रायगढ़। विधानसभा चुनाव के मतदान के बाद जैसे-जैसे मतगणना की तारीख करीब आ रही है। रायगढ़ सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों की ओर से जहां जीत के दावे किए जा रहे हैं। वहीं अब मतगणना की तारीख नजदीक आने पर जीत के आंकड़े भी राजनीतिक दलों की ओर से किये जा रहे हैं। कांग्रेस के लोग जहां इस सीट पर 10 हजार की बढ़त मिलने का दावा कर रहे हैं। वहीं भाजपा से जुड़े लोग रायगढ़ सीट में 30 हजार प्लस के आंकड़े को हवा दे रहे हैं। बताया जाता है इस चुनाव में रायगढ़ सीट पर कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधी टक्कर रही। जिससे दोनों ही बड़े राजनीतिक दल अपनी जीत को लेकर अस्वस्थ नजर आ रहे हैं। हालांकि राजनीति के जानकार मतदान के दौरान आम जनता के रुझान को मतदान में तब्दील होने पर परिणाम बेहद चौंकाने वाले आने की बात कह रहे हैं। रायगढ़ जिला मुख्यालय की इस सीट पर इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है। बताया जाता है कि रायगढ़ की इस सीट पर सभी की नजर है। भाजपा प्रत्याशी पूर्व आईएएस ओपी चौधरी इस बार रायगढ़ सीट से मैदान में उतरने पर कांग्रेस में खलबली मची हुई है। राजनीति के जानकारों की माने तो कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश नायक की तो पहले टिकट कटने की बात पार्टी के भीतर ही जोर-शोर से रही और अंत में प्रकाश नायक की टिकट फाइनल की गई। जबकि भाजपा प्रत्याशी अपने प्रचार की कमान संभाल चुके थे। भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी को लेकर युवाओं में बेहद क्रेज नजर आया। इसके अलावा ओपी चौधरी की प्रोफाइल को लेकर आज जनता में रुझान साफ तौर पर दिखा। हालांकि दोनों ही राजनीतिक दलों की ओर से सघन जनसंपर्क अपने-अपने घोषणा पत्र और प्रत्याशी के पक्ष में बेहतर माहौल बनाने की कोशिश भी की गई। इस चुनाव को भाजपा अपने पक्ष में करने के लिए विशेष रणनीति पर काम करते नजर आई। जबकि कांग्रेस अपनी जीत दोहराने की दिशा में आगे बढऩे का दावा करती है। बताया जाता है की रायगढ़ सीट पर मतदान के बाद मतदान के प्रतिशत को लेकर अलग-अलग तरह के कयास भी सामने आए और इसके बाद दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों के लोग अपनी-अपनी पार्टी के जीत के दावे भी करते नजर आए। राजनीति के जानकारों की माने तो मतदान के बाद दोनों ही राजनीतिक दलों ने अपने स्तर पर मतदान की समीक्षा भी कर ली और आगे कर भी रही है। जिससे उन्हें अपने-अपने प्रत्याशी की स्थिति का मोटे तौर पर आकलन भी किया जा चुका है। ऐसी स्थिति में अब बढ़त को लेकर दावे किए जा रहे हैं। बताया जाता है कि मतदान के दौरान आम लोगों में जिस तरह का रुझान नजर आया यदि वोटिंग भी उसी तर्ज पर हुई होगी तो परिणाम बेहद चौंकाने वाले आ सकते हैं। इस स्थिति में अब सबको 3 दिसंबर को होने हवाली मतगणना का इंतजार है। कि किसके दावे में कितना दम है। बताया जाता है कि कांग्रेस इस चुनाव में 10 हजार की बढ़त का दावा कर रही है। वहीं भाजपा के लोग 30 हजार प्लस की आंकड़ की ताल ठोंक रहे हैं। मतगधना कर तारीख करीब आने के साथ एक बार फिर राजनितिक माहौल तेजी से गरमाता जा रहा है। आने वाले दिनों में वोटिंग के आंकड़ों को लेकर बढ़त बनाने के नयेञनये दावे सामने आ सकते हैं। अब देखना है कि 17 नवंबर को आम जनता ने मतदान केन्द्रों में जो फैसला लिया और ईवीएम का बटन दबाया उसका परिणाम किसके पक्ष में जाता है।
भीतरघातियों को लेकर चिंता
इस बार चुनाव में भीतरघात होने की खूब चर्चा रही कांग्रेस और भाजपा के लोग जहां अपनी-अपनी जीत के दावे करते नजर आ रहे हैं। वहीं रायगढ़ सीट में दोनों ही दलों को भितरघात की आशंका बेचैन किए हुए हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो सबसे ज्यादा भितरघात की आशंका कांग्रेस में होने की बात कही जा रही है। कांग्रेस का कई घड़ा इस चुनाव से अपने को अलग रखे हुए साफ तौर पर दिखा। जिससे यह उम्मीद की जा रही है कि इसका असर कांग्रेस के वोट बैंक पर पड़ा है। शहरी क्षेत्र में कांग्रेस के कई नेता ना तो प्रत्याशी के साथ नजर आए और ना ही आम जनता के बीच देखे गए। इससे इस बात की आशंका है कि कांग्रेस को इसका सीधा नुकसान हो सकता है। हालांकि कांग्रेस यह भी दावा करती रही की नगर निगम क्षेत्र में पार्षदों के अलावा सभी नेता और कार्यकर्ता चुनावी कार्य में जुटे हैं। कुछ वार्डों के पार्षद तो अपने वार्ड से कांग्रेस प्रत्याशी को एक हजार लीड दिलाने का भी दावा कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में मतगणना के साथ ही स्थिति स्पष्ट होने की बात भी कहीं जा रही है। दूसरी तरफ भाजपा अपने प्रत्याशी के तेजी से बढ़ते ग्राफ पर सीधा लाभ मिलने का दावा तो कर रही है, लेकिन धरातल पर स्थिति क्या रही इसका स्पष्ट आकलन नहीं हो पा रहा है। बताया जाता है भाजपा में भी भितरघात होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि भाजपा ने पूरे चुनाव में एकजुट होने का जिस तरह से प्रदर्शन किया उसे भितरघात की संभावना नजर नहीं आती, लेकिन चुनाव मैनेजमेंट से नाराज कार्यकर्ताओं के घर बैठ जाने का वोटिंग पर कितना असर पड़ा इसे लेकर अंदेशा बना हुआ है। ऐसी स्थिति में भाजपा भी भितरघातियों के असर को लेकर चिंता कर सकती है। अब देखना है कि भितरघात से दोनों दलों को कितना नफा-नुकसान हो सकता है।
चुनावी परिणाम को लेकर गर्माया सट्टाबाजार
मतदान के बाद आंकड़ेबाजी के दावे सामने आने से सट्टाबाजार में भी गर्माहट देखी जा रही है। राजनीति के जानकारों की माने तो रायगढ़ शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस-भाजपा की जीत को लेकर भाव मांगा जा रहा है। बताया जाता है कि रायगढ़ में सट्टाबाजार ऐसे मौकों को लाभ के अवसर में बदलने पर आम आमादा रहती है। क्रिकेट मैच में जिस तरह से दाव लगाए जाते हैं, इस तरह से इस चुनाव में रिजल्ट को लेकर दांव लगाने की बात सामने आ रही है। भाजपा-कांग्रेस की जीत के अलावा बढ़त को लेकर भाव मांगा जा रहा है। चर्चा है कि सट्टाबाजार भाजपा प्रत्याशी को लेकर कोई भाव नहीं दे रहा है। इतना जरूर है की बढ़त को लेकर दाव लगाने की बात सुर्खियों में है। चुनावी परिणाम को लेकर गर्माते सट्टाबाजार पर पुलिस को अंकुश लगाने की बात कही जा रही। पुलिस इस पर किस तरह की कार्रवाई करती है यह देखने वाली बात होगी।
निर्दलीय कितना बिगाड़ेंगे चुनावी गणित
इस बार मतगणना से पहले ही बढ़त के जिस तरह से दावे सामने आ रहे हैं। उससे लगता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल इस चुनाव के निर्दलीय और अन्य दलों के पक्ष में आने वाले आंकड़ों को लेकर अस्वस्थ हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो निर्दलीय और अन्य दलों को मिलने वाले वोट परिणाम तय करने में बेहद निर्णायक हो सकता है। बताया जाता है कि नेक टू नेक फाईट की स्थिति में एक-एक वोट रिजल्ट को उलटने की क्षमता रखता है। इस चुनाव में भाजपा की बागी गोपिका गुप्ता और कांग्रेस के बागी शंकरलाल अग्रवाल की स्थिति क्या रहेगी इस पर अटकलें लगाई जा रही है। शंकरलाल अग्रवाल बीते डेढ़-दो वर्षों से पुसौर और सरिया क्षेत्र में कांग्रेस का झंडा बुलंद करने के साथ अपनी मौजूदगी जता रहे थे। कांग्रेस में रहकर शंकरलाल ने अपने समर्थकों की फौज तैयार कर ली थी। एन वक्त पर कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे शंकरलाल अग्रवाल कांग्रेस और भाजपा को कितना नुकसान पहुंचाने में कामयाब रहे फिलहाल इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। वैसी ही स्थित भाजपा से बागी गोपिका गुप्ता ने जिस तरह मुखरता से चुनाव मैदान में प्रदर्शन किया उसका कितना असर रहा इस पर भी फिलहाल कुछ कहना मुश्किल है। दूसरी तरफ आप पार्टी ने जिस तरह एक समाज विशेष के वोट बैंक के ध्रुवीकरण करने की नीति पर काम किया और उसे कितनी सफलता मिली इस पर भी फिलहाल एग्जैक्ट आकलन संभव नहीं। खास बात यह है कि इस चुनाव में छत्तीसगढ़ जनता कांगे्रस ने रायगढ़ की पूर्व महापौर मधु किन्नर को चुनाव मैदान में उतारा इससे प्रदेश में अपनी राजनीतिक दखल का लोहा मनवाने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की रणनीति को समझा जा सकता है। पूर्व महापौर ने जिस तरह रायगढ़ नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को सिकस्त दी थी, उसी चुनावी गणित को लेकर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने अपनी मौजूदगी का कितना असर छोड़ा इस पर भी कुछ कह पाना मुश्किल लगता है। अपने परंपरागत वोट पर भरोसा करने वाली बहुजन समाज पार्टी की मौजूदगी इस चुनाव में किसे नफा और नुकसान पहुंचा सकती है इसको भी लेकर अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हालांकि मतगणना को लेकर अटकलों में निर्दलियों और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के असर को कमतर आंका जा रहा है लेकिन यह भी तय माना जा रहा है कि इस चुनाव परिणाम में उनके पक्ष में आए आंकड़ों का असर पडऩे की आशेंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। अब देखना है कि निर्दलीय और अन्य राजनीतिक दल किस हद तक दोनों बड़े राजनीतिक दलों के चुनावी गणित को बिगाड़ पाने की स्थिति बना पाते हैं या नहीं?