रायगढ़। विधानसभा चुनाव में जैसे-जैसे प्रचार-प्रसार की रफ्तार बढ़ती जा रही है। वैसे-वैसे कार्यकर्ताओं की कमी महसूस की जा रही है। ज्यादातर राजनीतिक दलों के अलावा निर्दलीय प्रत्याशियों को प्रचार-प्रसार के लिए कार्यकर्ताओं का ओटा पढ़ रहा है। जिससे अब ज्यादातर लोग कार्यकर्ता हायर करने में जुट गए हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो चुनाव के समय में गरीब तबके के जरुरतमंद लोग चुनावी कार्य में हाथ बटाने के लिए तैयार रहते हैं।
इसके एवज में उन्हें मजदूरी के साथ दोपहर का भोजन देना पड़ता है। इन दिनों शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंपर्क कार्यक्रम में भीड़ बढ़ाने के लिए ऐसे किराए के लोगों की खूब डिमोड है। बताया जाता है कि करीब 500 मजदूरी में लोग रैली सभा या अन्य चुनावी कार्य में भीड़ बढ़ाने के लिए तैयार रहते हैं। और जरूरत के अनुसार राजनीति से जुड़े लोग उनकी सेवा लेने में गुरेज नहीं करते। रायगढ़ विधानसभा की इस सामान्य सीट पर कांग्रेस-भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों सहित निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या इस बार 19 है। जिला मुख्यालय की इस सीट पर 19 प्रत्याशी मैदान में होने से जनसंपर्क और प्रचार-प्रसार के काम के लिए कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ा है। जिससे राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों के अलावा निर्दलीय भी रोजी पर काम करने वाले लोगों की सेवा लेने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। हालांकि बड़े राजनीतिक दलों के लोग इन्हें पार्टी का कार्यकर्ता बताने में नहीं चुकते, लेकिन वास्तविकता तो और ही रहती है। राजनीति के जानकारों की माने तो वक्त के साथ सभी कार्यों में बदलाव का दौर शुरू हो गया है। जिससे अब रोजी मजदूरी करने वाले लोग भी चुनावी समय में इस तरह के कार्यों में सेवा देने के लिए तत्पर नजर आते हैं। बताया जाता है कि इस बार के चुनाव में रोजी पर काम करने वाले लोगों को भीड़ बढ़ाने से लेकर अन्य चुनावी कार्य जैसे झंडा लगाना, पाम्पलेट बांटना, पोस्टर लगाना आदि कामों में सेवा ली जा रही है। शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी इस तरह के चुनावी काम रोजी पर करते नजर आ रहे हैं। बड़े राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज होती है। लेकिन छोटे राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं की कमी साफ झलकती है। दूसरी तरफ एकाएक निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे लोगों के सामने तो कार्यकर्ताओं का आकाल ही रहता है। ऐसे में निर्दलीय तो भीड़ बढ़ाने के लिए ऐसे ही लोगों पर आश्रित रहते हैं। ऐसी स्थिति इस बार भी देखने को मिल रही है। चुनाव में नामांकन जमा करने से लेकर जनसंपर्क कार्यक्रमों में भीड़ बढ़ाने के लिए रोजी पर काम करने वाले गरीब वर्ग की जरूरतमंदों की खूब सेवाएं ली जा रही है।
पहले एडवांस, अर्जेंट पर ज्यादा रकम
किराए पर भीड़ बढ़ाने के लिए लोगों को बुलाना भी टेढ़ी खीर है। बताया जाता है कि ऐसे लोगों को एडवांस में बोलना पड़ता है, यदि तत्काल में लोगों की व्यवस्था करनी हो तो रोजी की दर बढ़ जाती है। सामान्यत सुबह 9:00 से शाम 5:00 तक के लिए 500 रूपये लिए जाते हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें एडवांस में कुछ रकम देना पड़ता है। अगर अर्जेंट में लोगों का इंतजाम करना हो तो इसके लिए अतिरिक्त रकम की मांग की जाती है। यदि सिर्फ एक-दो घंटे की बात हो तो 200 रूपये में भी काम चल जाता है। यह भी बताया जाता है कि बड़े राजनीतिक लोगों से ज्यादा की डिमांड होती है। लेकिन निर्दलीय या अन्य छोटे दलों को थोड़ी राहत मिल जाती है। खास बात यह है कि चुनावी घमासान में अपनी ताकत दिखाने के लिए इस तरह किराए पर लोगों का इंतजाम मौजूदा दौर में खूब हो रहा है।
गरीब वर्ग के जरूरतमंद करते हैं काम
चुनावी कार्य में काम करने के लिए शहरी क्षेत्र की गरीब और पिछड़े मोहल्ले के लोगों को राजनीति से जुड़े लोग लाते हैं। बताया जाता है कि दो-चार घंटे के लिए मजदूरी के साथ भोजन मिलने के बात पर लोग राजनीतिक लोगों के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करते हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो अब राजनीति में यह एक नया ट्रेड बन गया है। महानगरी शैली पर छोटे-बड़े शहरों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भीड़ बढ़ाने के लिए इसी तरह से किराए पर लोग बुलाए जाते हैं। इस चुनाव में यह ट्रेड जोरों पर है, चर्चा है कि इसका इस्तेमाल पैसे वाले रसूखदार राजनीतिक लोग बखूबी करते हैं। इस चुनाव में यह भीड़ बढ़ाने के लिए बाखूबी किया जा रहा है। राजनीति से जुड़े लोगों का कहना है कि राजनीतिक कार्यक्रमों के व्यय पर चुनाव आयोग की नजर रहती है। इस स्थिति में आखिर भीड़ बढ़ाने के लिए रोजी पर काम करने वाले लोगों की सेवा लेना ज्यादा सुलभ है। कार्यकर्ताओं की कमी महसूस नहीं होती। आखिर भीड़ के अनुसार चुनावी खर्च तो जोड़ ही दिया जाता है।
चुनावी दौर में कार्यकर्ताओं का आकाल, किराए पर इंतजाम
छोटे-बड़े राजनीतिक दलों को भी नहीं गुरेज, निर्दलीय तो रोजी पर भीड़ जुटाने पर आश्रित
