धरमजयगढ़। विधानसभा चुनाव के मतदान की तय मियाद को लेकर उलटी गिनती शुरू हो गई है। दिग्गज नेता राजनीतिक मैदान पर डटे हुए हैं और कई लोगों ने रण छोड़ दिया है। इन सब के राजनीतिक दलों की ओर से प्रचार प्रसार जारी है। लेकिन इस बार अपना प्रतिनिधि चुने जाने के सवाल पर जनता के बीच एक रहस्यमयी सन्नाटा पसरा हुआ है। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां वर्तमान में चुनावी प्रचार प्रसार, बीते चुनावी सालों की अपेक्षा लगभग नगण्य नजर आ रहा है। वोट की अपील करते हुए गानों के साथ कुछ गाडिय़ां जरूर घूम रही हैं लेकिन नगर व उसके आसपास के इलाके में स्थिति कुछ ऐसी है कि लोग अधिकांश प्रत्याशियों को जानते तक नहीं हैं। इस तरह के धीमे प्रचार प्रसार को राजनीति के कुछ जानकार चुनाव आयोग की कड़ाई का परिणाम मान रहे हैं तो वहीं कुछ का मानना है कि इतिहास में ऐसी स्थिति के बाद जो परिणाम सामने आए हैं वे अप्रत्याशित रहे हैं। वर्तमान में विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में कांग्रेस से निवर्तमान विधायक लालजीत राठिया और बीजेपी के जानेमाने प्रत्याशी हरिश्चंद्र राठिया आमने सामने हैं। वहीं, जोगी जनता पार्टी प्रत्याशी जोगेन्दर एक्का व सर्व आदिवासी समाज के ब्लॉक अध्यक्ष व हमर राज पार्टी प्रत्याशी महेन्द्र सिदार सहित बसपा की उम्मीदवार सत्यवती राठिया ने भी अपने स्तर पर मोर्चा संभाल रखा है। इसके अलावा दो निर्दलीय कंडीडेट भी मैदान में हैं। फिलहाल इन दिग्गजों के चुनावी मैदान में होने को लेकर क्षेत्र में प्रचार प्रसार नहीं के बराबर नजर आ रहा है। पहले की तरह राजनीतिक पार्टियों के जश गीतों से गलियों के गूंजने जैसा कोई माहौल नहीं है। चारों ओर एक गुमनाम खामोशी सी फैली हुई है जिसे लेकर सबकी अलग अलग राय है। विधानसभा क्षेत्र में चरम चुनावी सरगर्मी के बीच पसरी यह भयंकर खामोशी अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए है। जिसके कारण आने वाले परिणाम के बारे में फिलहाल कोई पुख्ता दावा करना काफी मुश्किल नजर आ रहा है। इस मामले में राजनीति के क्षेत्र में लंबे अरसे तक का अनुभव रखने वाले एक स्थानीय जानकार से बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि इतिहास में जब भी ऐसा माहौल बना है, जिससे यह तय न किया जा सके कि ऊंट किस करवट बैठेगा उस स्थिति के बाद जो परिणाम आए हैं वे अविश्सनीय रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में चुनावी प्रचार की चमक धमक नजर नहीं आने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जैसे कि सोशल मीडिया पर भी अब ज्यादा फोकस किया जा रहा है, लेकिन जब भी चुनाव के समय इस तरह फिज़ा शांत हुई है उसके बाद जो परिणाम सामने आया है वह किसी तूफान से कम नहीं रहा है। बहरहाल, विधानसभा क्षेत्र में चुनावी माहौल के बीच मन्द गति से प्रचार प्रसार और मतदाताओं की चुप्पी किसी साइलेंट किलर की तरह नजर आ रही है।