रायगढ़। जिले के खरसिया विधानसभा क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र होने के बाद भी नहर से सिंचाई की समुचित सुविधा किसानों को नहीं मिल पाई है। क्षेत्र की करीब 80 फ़ीसदी आबादी कृषि पर ही निर्भर है, बावजूद इसके लंबे इंतजार के बाद भी बरगढ़ खोला और दक्षिणी इलाके में नेहरो की सुविधा नहीं पहुंची है। क्षेत्र के उत्तर-पूर्व हिस्से में स्थापित औद्योगिक इकाइयों की स्थापना जहां औद्योगिक प्रदूषण फैला रहे हैं, वहीं भूमि अधिग्रहण के बाद क्षेत्र के लोगों को उद्योगों में रोजगार के अवसर नहीं मिल पाए। जिससे क्षेत्र में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ी है। इसके अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर सुविधा की क्षेत्र के लोग बाट जोह रहे हैं।
खरसिया में सीएचसी और कुछ गिनती के प्राथमिक और उप स्वास्थ्य केद्रो के भरोसे है। क्षेत्र के वाशिंदे जिला मुख्यालय रायगढ़ के जिला चिकित्सालय और मेडिकल कॉलेज पर निर्भर हैं। शिक्षा के क्षेत्र में गिने-चुने शासकीय स्कूलों को छोड़ दे तो ज्यादातर प्राथमिक, मिडिल एवं हाई व हायर सेकेंडरी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। जिसके चलते क्षेत्र के लोग निजी स्कूलों की तरफ पलायन करते नजर आ रहे हैं। क्षेत्र में स्थापित नवोदय विद्यालय को लेकर क्षेत्र के लोगों में रुझान कम होता दिख रहा है। दो दशक पूर्व खरसिया क्षेत्र के समग्र विकास की जो तस्वीरें उभरती नजर आ रही थी। धीरे-धीरे उस पर ग्रहण लगता जा रहा है। क्षेत्र में तिरोहित हो चुके राजनीतिक इच्छा शक्ति को इसका प्रमुख कारण बताया जा रहा है। मौजूदा दौर में खरसिया क्षेत्र के उन स्वर्णिम दिनों को याद करने की बजाय उनके पास कुछ शेष नहीं है। खरसिया शहर दशकों से व्यापारिक नगरी के तौर पर अपनी पहचान बनाए हुए हैं। परंतु मौजूदा दौर में कुबेरों की इस नगरी में इंफ्रास्ट्रक्चर, डेवलपमेंट शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार के विस्तार के लिए मास्टर प्लान तैयार कर धरातल पर उतरने की जरूरत है, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव विकास की उन परिकल्पनाओं के आड़े आ रहा है। सडक़, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के झंझावत में जूझते खरसिया नगरीय क्षेत्र के लोगों का ऐसे राजनीतिक नेतृत्व पर विश्वास कर पाना बेहद कठिन होता जा रहा है। खरसिया के नगरीय क्षेत्र का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर भी असर होता दिख रहा है। जिससे क्षेत्र के समग्र विकास के लिए आवाज बुलंद होते दिख रहे हैं। किसान, युवा, व्यापारी लामबंद हो रहे अपनी बात सीधे तौर पर कहते नजर आ रहे हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो खरसिया क्षेत्र में किसान अब उन्नत कृषि को लेकर बेहद सजग हो गए हैं। जिससे सिंचाई के लिए नहर की सुविधा उपलब्ध नहीं होने पर बोर पंप का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन लगातार बोर पंप की बढ़ती संख्या और भूजल स्तर में आ रही गिरावट से किसान भविष्य को लेकर चिंतित हैं। खरसिया क्षेत्र में अब तक केलो सिंचाई परियोजना का पानी पूरी तरह से नहीं पहुंच पाया है। वहीं हसदेव बांगो नहर भी पर्याप्त नहीं है। मौजूदा दौर में खरसिया क्षेत्र के कई इलाके आसमानी बारिश पर ही निर्भर है। जिससे चाह कर भी फसल उत्पादन में वृद्धि की गुंजाइश नहीं दिखती। इसके अलावा खरसिया क्षेत्र में रोजगार को लेकर युवा बेहद चिंतित हैं। क्षेत्र में स्थापित उद्योगों में समुचित रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होने पर उन्हें बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है।
प्रदूषण की चपेट में खेती और स्वास्थ्य
दूसरी तरफ क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित उद्योग कृषि प्रधान क्षेत्र के लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। दिनों दिन क्षेत्र औद्योगिक प्रदूषण की चपेट में घिरता जा रहा है। उद्योगों से निकलने वाले औद्योगिक प्रदूषण का दुष्प्रभाव खेती-किसानी के अलावा मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर डाल रहा है। इसके साथ ही औद्योगिक इकाइयों के चलते भारी वाहनों की रेलमपेल से क्षेत्र सडक़ दुर्घटनाओं के आगोश में आता जा रहा है। बेहतर चिकित्सा सुविधा सुलभ नहीं हो होने पर लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व अपनी विरासत सहेजने की जद्दोजहद पर ही व्यस्त है।
बरगढ़ खोला क्षेत्र विकास से कोसों दूर
खरसिया क्षेत्र का बरगढ़ खोला हमेशा ही अपेक्षा का शिकार रहा। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के 26 पंचायत में समग्र विकास की सोच भी नहीं पहुंच पाई बिजली, पानी, सडक़, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझते इस वनांचल क्षेत्र में राजनीतिक चेतना का प्रादुर्भाव तो हुआ, लेकिन उसे भी वर्ग विशेष की राजनीति महत्वाकांक्षा लील गई। मौजूदा दौर में क्षेत्र के वाशिंदो को औद्योगिक विकास का सब्जबाग दिखाकर विस्थापन की चिंता सोने नहीं दे रही है। वनांचल क्षेत्र के किसान सिंचाई और पेयजल की बेहतर सुविधा का बाट जोह रहे हैं, युवा रोजगार का सपना संजोए सत्ता के गलियारों की तरफ निहारे रहे है, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के सपने भी बुढी आंखों पर अब नहीं आते, सबने अपने हाल पर रहना सीख लिया है।
माफिया गिरी का फैलता जाल
क्षेत्र में राजनीतिक अनुभवहीनता का दुष्प्रभाव भी परिलक्षित होता जा रहा है। इस दौर में माफिया गिरी की उत्पत्ति लोगों के लिए चिंता का कारण बनते जा रहा है। खनिज संपदाओं को अंधाधुन उत्खनन और माफिया गिरी के फैलने मकर जल से अपराध जगत को खुला आमंत्रण क्षेत्र के लिए बेहद चिंताजनक है, परंतु इस पर अंकुश लगाने के बजाय उनका संरक्षण क्षेत्र की शांत प्रवृत्ति जनता के मन पर ऐसा जहर घोल रही है, जिससे संस्कारिक जीवन की अमृत मई शैली विषैली होती जा रही है। अपनों की चिंता करने वाले राजनीतिक मनसा को अब समझना होगा कि क्षेत्र के वाशिंदों को खुशहाली वह पैगाम देने की विरासत को अमल में लाकर ही विश्वास की बढ़ती खाई को पाटा जा सकता है।
उद्योगों से रोजगार की आस अधूरी
कृषि प्रधान इस क्षेत्र में अनवरत कृषि भूमि उद्योगों की भेंट चढ़ती रही है। खरसिया का धनागर, कलमी, बड़े भंडार, छोटे भंडार, चपले, दर्रामुड़ा , नहरपाली, भूदेवपुर के इलाके को कृषि भूमि का रकबा तेजी से कम हुआ। परंतु इस क्षेत्र के विकास में स्थापित औद्योगिक इकाइयों की मंशा स्पष्ट नहीं हो पाई। राजनीतिक रसूखदार तात्कालिक लाभ से मलाई खाते रहे और भूमि अधिग्रहण के बाद भी मुआवजा और रोजगार के लिए क्षेत्र के लोग औद्योगिक इकाइयों के रहमों-करम की आस लगाए हैं। परंतु राजनीतिक इच्छा शक्ति क्षेत्र के भू स्थापित किसान परिवारों के गहरे होते जख्म पर मरहम लगाने में नाकाम भी दिखे। जिसका असर यह हुआ कि क्षेत्र में राजनीतिक शून्यता का भाव भी उत्पन्न होता नजर आता है।