रायगढ़। सारंगढ़ जिला गठन होने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में दो विधानसभा सीट है। जिसमें एक सारंगढ़ और दूसरी बिलाईगढ़ की सीट है। सारंगढ़ विधानसभा में जाति समीकरण पर टिका हुआ है। यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है और यह क्षेत्र सतनामी बाहुल्य विधानसभा सीट मानी जाती है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पांचवीं बार यहां विधानसभा सीट के चुनाव हो रहे हैं। खास बात यह है कि 2003 से 2018 तक के चुनाव में कोई भी विधायक रिपीट नहीं हुआ है। हर बार यहां की जनता नया विधायक चुनते आ रही है। क्योंकि क्षेत्र वासियों की बहुप्रतिक्षित जिले की मांग को कांग्रेस सरकार पूरा किया और सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला का गठन कर दिया। जिसका लाभ कांग्रेस प्रत्याशी को मिलने की उम्मीद तो जरूर है, लेकिन यह लाभ नतीजे में बदलता है या नहीं यह तो रिजल्ट ही बताएगा। क्योंकि भाजपा एक बार फिर यहां से नए चेहरे पर जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए दाव खेला है।
अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर कांग्रेस ने दूसरी बार उत्तरी गणपत जांगड़े पर विश्वास किया है। सारंगढ़ विधायक उत्तरी गणपत जांगड़े को रिपीट करने पर क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह नजर आ रहा है। अपने पहले 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी उत्तरी गणपत जांगड़े ने भाजपा की केराबाई मनोहर को 56 हजार 389 वोट की लीड से पराजित किया था। कांग्रेस प्रत्याशी को 1लाख 1834 मत मिले थे। राजनीतिक सूत्रों की माने तो 2018 का चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी उत्तरी गणपत जांगड़े की बंपर जीत के चलते पार्टी ने इस चुनाव में उत्तरी गणपत जांगड़े को रिपीट किया है। बताया जाता है कि सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला का गठन में सारंगढ़ विधायक उत्तरी गणपत ने सार्थक प्रयास कर क्षेत्र वासियों की बहु प्रतीक्षित मांग को पूरा कराया। जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिल सकता है। हालांकि भाजपा ने सारंगढ़ सीट से कांग्रेस के इस किले को ध्वस्त करने की रणनीति पर इस चुनाव में नया प्रत्याशी उतार दिया है। चर्चा है कि जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने चौहान समाज की शिवकुमारी चौहान को प्रत्याशी बनाया है । राजनीति के जानकारों की माने तो सारंगढ़ की इस सीट पर जातीय समीकरण हमेशा हावी रहा है। इस क्षेत्र में सतनामी समाज की बहुलता है। सतनामी समाज एक बड़े वोट बैंक के साथ राजनीतिक वर्चस्व बनाने में ज्यादा बार कामयाब रहा है। बताया जाता है कि इस समाज का अनुमानित वोट करीब 45 से 50 हजार है। दूसरे बड़े समाज के तौर पर चौहान समाज का करीब 22 से 25 हजार वोट माना जाता है। भाजपा ने इसी पर नजर रखते हुए इस बार चौहान समाज से आने वाले प्रत्याशी पर दाव लगाया है। इस सीट से भाजपा प्रत्याशी शिवकुमारी चौहान मूलत: केडार क्षेत्र से हैं और जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं। जिससे भाजपा इस चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त देने की तैयारी में जुटी है। जाति समीकरण से इस चुनाव को अपने पाले में करने की इस रणनीति को क्षेत्र के मतदाता किस रूप में लेते हैं यह तो आने वाले वक्त में पता चल सकेगा, लेकिन भाजपा ने अपने इस समीकरण से कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। राजनीतिक जानकारों की माने तो कांग्रेस के अलावा बहुजन समाज पार्टी और आप पार्टी ने भी सतनामी समाज से आने वालों को टिकट दिया है। बसपा से हिर्री पंचायत के पूर्व सरपंच नारायण रत्नाकर को प्रत्याशी बनाया है। जबकि आप पार्टी ने सतनामी विकास परिषद के पूर्व अध्यक्ष देव कोसले को प्रत्याशी घोषित किया है। इस तरह सारंगढ़ से कांग्रेस को घेरने की पूरी रणनीति बनाई जा रही है। करीब 56 हजार से भी अधिक लिड लेकर 2018 में निर्वाचित कांग्रेस की उतरी गणपत जांगड़े को इस बार भी रोक पाना भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती मानी जा सकती है।
30-39 आयु वर्ग के सबसे अधिक मतदाता
सारंगढ़ सीट तीन तहसील क्षेत्र सारंगढ़, बरमकेला और सरिया के अलावा उप तहसील कोसीर शामिल है। 2023 के चुनाव में इस क्षेत्र से कुल मतदाता 2 लाख 63 हजार 424 है। जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1लाख 32 हजार 808 है। महिला मतदाता 1लाख 30 हजार 612 है। इस बार नए मतदाताओं की संख्या 10 हजार 233 है। सबसे अधिक मतदाता 30 से 39 आयु वर्ग से है जिनकी संख्या 74 हजार 450 है। इसके बाद 20 से 29 आयु वर्ग के मतदाता हैं इनकी संख्या 64 हजार 935 है। 40 से 49 आयु वर्ग से कल 45 हजार 275 मतदाता है। 50 से 59 आयु वर्ग के 36 हजार 215 और 60 से 69 आयु वर्ग के 20 हजार 801 मतदाता है। इस तरह की सीट से अन्य आयु वर्ग को मिलाकर कुल 2 लाख 63 हजार 424 मतदाता है।
भाजपा प्रत्याशी ने जमा किया फॉर्म
पिछले 2018 के चुनाव में कांग्रेस भाजपा और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला रहा। जिससे सर्वाधिक कांग्रेस की उतरी गणपत जांगड़े के खाते में 1 लाख 18 हजार 34 वोट पड़े। भाजपा की केराबाई मनहर के हिस्से में 49 हजार 445 वोट और बसपा प्रत्याशी अरविंद खटकर 31083 वोट हासिल कर पाए थे। चुनाव में एक-एक वोट पर नजर प्रत्याशियों की रहती है। पिछले 2018 के चुनाव में कांग्रेस-भाजपा और बसपा सहित कुल 14 प्रत्याशी चुनावी मैदान में रहे। इस बार उससे अधिक प्रत्याशी होने की संभावना है। नामांकन फॉर्म लेने की शुरुआत पर पहले ही दिन 5 लोगों ने नामांकन फार्म खरीदा। जिससे बसपा से नारायण रत्नाकर कांग्रेस से उतरी जांगड़े, छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी से धनका निराला, भाजपा से शिवकुमारी चौहान, आम आदमी पार्टी से अजय कुमार कुर्रे, जनता कांग्रेस से ललिता बघेल ने नामांकन फार्म खरीदा है। दूसरे दिन किसी ने भी नामांकन फॉर्म नहीं खरीदा। दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी शिवकुमारी चौहान ने नामांकन दाखिल भी कर दिया है। आने वाले दिनों में नामांकन फार्म लेने वालों की संख्या बढ़ सकती है।
कांग्रेस को जीत बरकरार रखने की चुनौती
कांग्रेस के लिए सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला मुख्यालय की सीट पर कब्जा बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती है। नए जिला के गठन के बाद कांग्रेस के हौसले भले ही बुलंद हो, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी उत्तरी गणपत जांगड़े के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। नया जिला गठन के बाद विकास की नई उम्मीदों को लेकर क्षेत्र की जनता उत्साहित है। चिकित्सा सेवा, उच्च शिक्षा, सडक़, सिंचाई सुविधा के विस्तार के अलावा युवाओं के लिए नए रोजगार का सृजन करने जैसे कई मुद्दे इस चुनाव में सामने आएंगे। सत्ताधारी दल कांग्रेस के सामने मौजूदा कार्यकाल के एंटी इनकमबेसी भी एक बड़ी चुनौती रहेगी। ऐसी स्थिति में 56000 से अधिक लिड लेकर 2018 का चुनाव में विधायक बनी उत्तरी गणपत जांगड़े के लिए इस बार एक बड़ी चुनौती मानी जा सकती है।
ओबीसी वोट बैंक पर भाजपा की नजर !
इस सीट से भाजपा चुनाव जीतने की जिस रणनीति पर काम कर रही है उससे लगता है कि वोट बढ़ाने के लिए भाजपा की नजर ओबीसी वोट बैंक पर भी है। इस क्षेत्र में अघरिया पटेल, माली पटेल, साहू समाज, यादव समाज, जयसवाल समाज के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग अन्य जाति के मतदाताओं की भी बड़ी तादाद है। राजनीति के जानकारों की माने तो ओबीसी वर्ग इस क्षेत्र में भाजपा को लेकर बेहद गंभीर हैं, जिससे लगता है कि भाजपा ओबीसी वर्ग को साधने की पूरी रणनीति बना सकती है । समग्र रूप से देखा जाए तो 50 फ़ीसदी से अधिक ओबीसी वर्ग के मतदाता है। अब इन मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक दल किस रणनीति पर काम करते हैं इसे कुछ कह पाना फिलहाल मुश्किल है। परंतु यह भी तय है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षक इस सीट पर ओबीसी वोट बैंक निर्णायक भूमिका में रहेगा।
ज्यादातर कांग्रेस से बने हैं विधायक
सारंगढ़ सीट पर कांग्रेस का ज्यादातर दबदबा रहा। अब तक 15 चुनाव में कांग्रेस से 10 बार विधायक बने हैं। जबकि 1985 में एक बार निर्दलीय पूरी राम चौहान ने चुनाव जीता था और दो-दो बार भाजपा और बसपा को इस सीट से विधायक बनने का अवसर मिल चुका है। पहली बार 1993 के चुनाव में शमशेर सिंह भाजपा से विधायक निर्वाचित हुए उसके बाद भाजपा को 10 साल इंतजार करना पड़ा। भाजपा की केराबाई मनहर को 2013 के चुनाव में जीत मिली थी। यदि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद की बात करें तो 2003 के चुनाव में बसपा की कामदा जोल्हे ने पहला चुनाव जीता। हालांकि 1998 का चुनाव में बसपा यहां से खाता खोल चुकी थी। बसपा के डॉक्टर छबिलाल रात्रे ने यहां से चुनाव जीता था। इस सीट से 2008 के चुनाव में कांग्रेस की पदमा घनश्याम मनहर विधायक बनी और 2018 के चुनाव में उत्तरी गणपत जांगड़े ने इस सीट पर जीत दर्ज की।
क्या जातीय समीकरण से सधेगा सारंगढ़ का चुनाव
कहीं सतनामी समाज का बिखर न जाए वोट, भाजपा को चौहान समाज पर भरोसा
