रायगढ़। जिले के धरमजयगढ़ विधानसभा सीट से ज्यादातर कांग्रेस को जीत मिलती रही है। अब तक के 15 चुनाव में कांग्रेस ने जहां 13 बार जीत दर्ज की है। वहीं भाजपा को सिर्फ दो बार ही जीत मिली। इस बार भाजपा ने राठिया समाज के मजबूत नेता और जिला पंचायत सदस्य हरिश राठिया को मैदान में उतारा है। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी लालजीत सिंह राठिया को पार्टी ने तीसरी बार चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा को एक बार फिर चैलेंज किया है। परंतु इस बार धरमजयगढ़ की परिस्थितियां काफी बदली हुई है, जिससे लगता है कि इस चुनाव में मुकाबला कांटे के होने की संभावना है। राजनीतिक जानकारों की माने तो लगातार दो बार के विधायक लालजीत सिंह राठिया को इस बार एंटी इंकमबेसी का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी के लिए भी लालजीत सिंह के जीत के आंकड़े को पार कर पाना बेहद टेढ़ी खीर मानी जा सकती है। भाजपा जोर लगाएगी तो मुकाबला टक्कर का हो सकता है। रायगढ़ जिले की इस सीट को लेकर कांग्रेस और भाजपा की क्या रणनीति होगी यह आने वाले दिनों में ही पता चल सकता है।
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित धर्मजयगढ़ की सीट कांग्रेस के गढ़ के रूप में रही है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भाजपा ने पहली बार 2003 के चुनाव में इस सीट में अपना खाता खोला। भाजपा प्रत्याशी ओमप्रकाश राठिया ने पांच बार कांग्रेस से विधायक रहे कद्दावर नेता और मंत्री चनेश राम राठिया को पराजित किया था। उसके बाद 2008 के चुनाव में भाजपा के ओमप्रकाश राठिया दूसरी बार इस सीट से जीत दर्ज करने में सफल रहे, लेकिन 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से इस सीट को अपने कब्जे में कर लिया। इस चुनाव में लालजीत सिंह राठिया ने भाजपा प्रत्याशी को हराकर पिता चनेशराम राठिया की हार का बदला ले लिया। इसके बाद 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी लालजीत सिंह राठिया ने ओमप्रकाश राठिया की पुत्रवधू भाजपा प्रत्याशी लिनव राठिया को प्रचंड मतों से पराजित कर कांग्रेस का झंडा बुलंद रखने में कामयाबी हासिल की। लालजीत सिंह राठिया को 2018 के चुनाव में 95 हजार 173 मत मिले थे। इस तरह 41 हजार से अधिक की लीड से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी।
इस बार कांग्रेस ने लालजीत सिंह राठिया को हैट्रिक लगाने का मौका दिया है, लेकिन भाजपा ने प्रत्याशी बदलकर नई रणनीति से चुनाव लडऩे की तैयारी कर ली है। जिससे लगता है भाजपा हर हाल में इस सीट को कांग्रेस से वापस लेने की रणनीति पर जुटी है। राजनीतिक जानकारों की माने तो इस बार लालजीत सिंह राठिया के सामने भाजपा बड़ी मुश्किले खड़ी कर सकती है। दो बार से लगातार विधायक रहे लालजीत सिंह रठिया के पास जनता को खुश करने के लिए कुछ खास नहीं है।
सडक़ों की बत्तर हालात किसी से छिपी नहीं है। बेरोजगारी से लेकर किसानों की कर्ज माफी और ग्रामीण क्षेत्र के समग्र विकास के लिए कांग्रेस शासन काल में भी कुछ बेहतर नहीं कर पाना लालजीत सिंह रठिया के लिए मुश्किले खड़ी कर सकती है। दूसरी तरफ संगठन स्तर में कार्यकर्ताओं की नाराजगी का भी लालजीत सिंह राठिया को सामना करना पड़ सकता है। धर्मजयगढ़ नगरीय क्षेत्र के पार्टी कार्यकर्ताओं के मध्य सामंजस्य ना बैठा पाना कांग्रेस प्रत्याशी के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
भाजपा की नजर कांग्रेस की हर चाल पर है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि इस बार लालजीत सिंह राठिया को घेरने तगड़ी खेराबंदी करने की रणनीति पर भाजपा कम कर रही है। बताया जाता है कि आदिवासी समाज में मजबूत पकड़ रखने वाले रठिया जाति से ही प्रत्याशी घोषित कर इसकी शुरुआत भाजपा ने कर दी है। भाजपा प्रत्याशी हरिशचंद रठिया फिलहाल जिला पंचायत सदस्य हैं। इसके अलावा में धरमजयगढ़ ब्लॉक से आते हैं। जिससे धरमजयगढ़ और काबू ब्लॉक में भाजपा को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि भाजपा प्रत्याशी के सामने कांग्रेस की करीब 41 हजार की लीड एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी है। इस बड़ी लीड को पाटना फिलहाल मुश्किल सा लगता है , लेकिन भाजपा जिस एकजुटता से चुनाव लडऩे का दावा और प्रदर्शन कर रही है। उसे लगता है कि चुनाव में कांटे की टक्कर हो सकती है। कांग्रेस एंटी इनकमबेसी से निपटने के लिए क्या नई घोषणाएं और वादे करती है। जिससे इस चुनाव को अपने पाले में रखा जा सके। इस पर सब की नजर है तो दूसरी तरफ भाजपा इस चुनाव को पूरी मुखरता से लडऩे की तैयारी में है। अब आने वाले दिनों में कांग्रेस और भाजपा मतदाताओं को साधने के लिए किस रणनीति पर आगे बढ़ते हैं यह तो नतीजा ही बताएंगे।
अब तक लालजीत व हरीश ने ही लिया नामांकन फॉर्म
धरमजयगढ़ सीट से अब तक सिर्फ दो प्रत्याशियों ने नामांकन फार्म लिया है। जिनमें कांग्रेस प्रत्याशी लालजीत सिंह राठिया और भाजपा प्रत्याशी हरिचंद राठिया ने भी नामांकन फार्म लेने की शुरुआत होने के दूसरे दिन लिया। पहले दिन इस क्षेत्र से कोई भी नामांकन फार्म लेने नहीं पहुंचा। जिससे शुरुआती दौर में लग रहा है कि इस सीट से सीधे-सीधे भाजपा-कांग्रेस के बीच मुकाबला हो सकता है। हालांकि 2018 के चुनाव कांग्रेस-भाजपा के अलावा सात प्रत्याशी मैदान में थे। जिसमें समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आप पार्टी और जनता कांग्रेस सही तो निर्दलीय थे। इस बार रायगढ़ जिले में आप पार्टी नहीं धमक से उतरने की तैयारी में है। जिससे लगता है कि आप पार्टी इस सीट से भी प्रत्याशी उतार सकती है। दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी धरमजयगढ़ के बाकारूमा इलाके से अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है। बताया जाता है कि कांग्रेस प्रत्याशी लालजीत सिंह राठिया के एक रिश्तेदार को बसपा प्रत्याशी बनाकर उतार सकती है। चर्चा है कि भाजपा को इस क्षेत्र में घेरने के लिए बाकारूमा को उस व्यक्ति को बसपा मैदान में उतर सकती है। भाजपा प्रत्याशी हरिशचंद राठिया बाकारूमा से आते हैं। धरमजयगढ़ आने वाले दिनों में प्रत्याशियों की संख्या में वृद्धि होने की उम्मीद की जा सकती है।
भाजपा के सामने वोट बैंक बढ़ाने की चुनौती
अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट में भाजपा के सामने अपना वोट बैंक बढ़ाने की चुनौती रही है। लगातार दो बार के पराजय के बाद भाजपा इस क्षेत्र में ऐसा कोई जनाधार वाला नेता खड़ा करने में सफल नहीं रही। हालांकि घरघोड़ा,छाल, कापू सहित धरमजयगढ़ नगरीय क्षेत्र में भाजपा में सक्रिय कार्यकर्ताओं की धमक रही, परंतु नेतृत्व क्षमता को लेकर कमी की बात सामने आती रही है। इस स्थिति में भाजपा के सामने अपना वोट बैंक बढ़ाने की अभी भी बड़ी चुनौती मानी जा सकती है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि रही है। भाजपा आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में ओबीसी वर्ग को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा भाजपा की नजर महिला मतदाताओं पर भी है। हालांकि 2018 के चुनाव में महिला प्रत्याशी उतारने के बाद भी लिनव राठिया कुछ खास नहीं कर पाई, जिससे महज 54 हजार 838 वोट ही भाजपा के खाते में आई। खास बात यह है कि रायगढ़ जिले की इस सीट में महिला मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। जहां इस क्षेत्र में इस बार पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 3 हजार 915 है। वही महिला मतदाता पुरुषों के मुकाबले 5 हजार अधिक है। इसके अलावा करीब साढ़े सात हजार नए मतदाता जुड़े हैं।
सडक़ हो सकती है बड़ा मुद्दा
धरमजयगढ़ क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या बद्दतर सडक़ की रही है। जिले की खरसिया से धर्मजयगढ़, धर्मजयगढ़ से कापू, घरघोड़ा से धर्मजयगढ़ छाल से घरघोड़ा तक की सडक़ की जर्जर और बद्तर हालत को लेकर भाजपा ने बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। हालांकि आंदोलन के बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इन सभी सडक़ों के जीर्णोद्धार के लिए बड़ी राशि जारी की और लंबे इंतजार के बाद सडक़ों के जीर्णोद्धार की शुरुआत तो हुई परंतु कछुआ की चाल से चल रहे निर्माण कार्य से क्षेत्र की जनता खानापूर्ति मान रही है। अभी कई प्रमुख सडक़ों का निर्माण पूरा नहीं हो सका है। सडक़ निर्माण में बड़े पैमाने पर अनियमितता की भी शिकायतें आती रही और कई विभागीय अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई भी की गई। मौजूदा स्थिति में भाजपा इसे बड़े मुद्दे के रूप में चुनाव में इस्तेमाल कर सकती है और कांग्रेस को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि कांग्रेस इसके बचाव में क्या रुख अख्तियार करती है। चर्चा है कि कांग्रेस अपने शासनकाल में सडक़ों की दुर्दशा को संवारने का श्रेय भी ले सकती है। अब इस मुद्दे से आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा किसका नफा-नुकसान होगा यह फिलहाल भविष्य गर्त में है, लेकिन यह भी तय है कि इस चुनाव में सडक़ का मुद्दा छाया रहेगा।