भटगांव। नगर भटगांव से महज तीन किलो मीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत देवसागर मे हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 12 अप्रेल को ग्राम देवसागर मे मां भगवती हिंगलाज माता के मंदिर मे मेले का भव्य आयोजन किया जा रहा है। मेले मे सुबह 5 बजे से रात्रि 8:30 बजे तक लोगो की भीड़ बनी रहती है। मेले मे लगभग दो लाख से अधिक लोग पूजा अर्चना कर मन्नतें मांगते है। बाहर से आये श्रध्दालु नारियल, नींबू चढ़ाकर अपनी मनोकामना के लिए वरदान मांगते है। माता हिंगलाज मे प्रसाद के रूप मे पुजारी द्वारा माता मे चढ़ी हल्दी श्रध्दालुओं को दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्रध्दालु माता के दरबार मे मन्नते मांगते है और उनकी मनोकामना पूरी होती है। बताया जाता है कि चैत पूर्णिमा को इस क्षेत्र के धरनीहीन जो जमीन पर लेट कर जमीन नापते हुए मां हिंगलाज की मंदिर जाते है, और पूर्व रात्रि मे मंदिर पहुंच कर लेटे रहते है। और उन्हें सुबह पांच बजे जमींदार परिवार द्वारा पूजा अर्चना के बाद हल्दी पानी का छीटा देकर उठाया जाता है। उसके बाद जमीन नापने वाले धरनीहीन उठकर देवी की पूजा अर्चना कर मेले का आंनद लेते है। खास बात यह भी है कि जिस मां की गोद सुनी रहती है एवं अन्य परेशानियों मे जो शरीरिक रूप से परेशान रहते है, ऐसे लोग मां का दरबार मे जमीन नापते आते है और मन्नत मांगते है। जिसकी मन्नत पूरी होती है वे दूसरे साल चैत पूर्णिमा के दिन अपने बच्चों के साथ आते है व मां हिंगलाज का दर्शन कर आशीर्वाद लेते है। आपको बता दे कि नगर भटगांव से महज 3 किलो मीटर मे दक्षिण दिशा की ओर ऐतिहासिक मंदिर पठारों मे घिरा हुआ है। जहां आदि शक्ति मां हिंगलाज जेवरादाई विराजमान है। यह प्राचीन काल से चैत पूर्णिमा हनुमान जंयती के दिन एक दिवसीय भव्य मेला लगता है। मान्यता यह है कि लोगो की हर मन्नत पूरी होती है। लाखों की संख्या मे लोग दर्शन करने आते है। वही रात मे एक भी व्यक्ति मंदिर के पास नही रूकता है, बताया जाता है कि माता जो है उस रात पूरे मंदिर क्षेत्र मे भ्रमण करती है।
राजघराने से जुड़ी है कथा
इस ऐतिहासिक मंदिर का रहस्य भटगांव जमींदार व सारंगढ के राजघराने से जुड़ी हुई है। वही पुराने जमाने के बुजुर्गो द्वारा बताया गया कि प्रचीन काल से देवी हिंगलाज माता भटगांव नगर पंचायत से 3 किलो मीटर दूर ग्राम जेवराडीह गांव की पहाड़ी पर स्थित थी। बताया जाता है कि सारंगढ़ के राजा देवी की मूर्ति को रात्रि मे बैलगाड़ी से अपनी राज्य ले जा रहा था। ठीक उसी रात भटगांव के जमींदार को सपना मे दिखाई दिया कि मुझे सारंगढ़ का राजा जबरदस्ती उठाकर बैलगाड़ी मे अपने राज्य ले जा रहा है। तब जमींदार उसी रात क्षेत्र के कुछ ग्रामीणों को लेकर देवसागर पहुंचा। जहां सारंगढ़ के राजा माता हिंगलाज देवी की मूर्ति को अपने बैलगाड़ी मे लेकर जा रहा था। तब भटगांव जमींदार के कहने पर राजा देवी की मूर्ति वही पर छोड़ कर वापस अपने राज्य सारंगढ़ चला गया। पुराने बुजुर्गों से पूछने पर बताया गया कि सारंगढ़ राजा और भटगांव जमींदार के बीच देवी मूर्ति को ले जाने के चलते काफी विवाद हुआ। इस दौरान राजा देवी के नाक का कुछ हिस्सा नथनी सहित काट कर ले गया। आज भी चैत्र पूर्णिमा के दिन सारंगढ़ राज महल मे देवी की पूजा अर्चना होती है, लोक इस दिन चैत्र पूर्णिमा के दिन ग्राम पंचायत देवसागर मे भटगांव जमींदार स्व. धरम सिंह ने मूर्ति की स्थापना ग्राम पंचायत देवसागर की पहाडिय़ों के ऊपर की। इसलिए इसी दिन से चैतराई मेले का शुरूवात हुई मेले का आयोजन प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा के दिन से आज तक भटगांव जमींदार परिवार द्वारा किया जाता है।
जमींदार परिवार के लोग करते है पूजा
जमींदार परिवार देवी की कई पीढिय़ों से पूजा अर्चना करते आ रहे है। अंतिम जमींदार प्रेम भुवन प्रताप सिंह थे। उनकी वंशज प्रभादेवी, इंदिरा कुमारी द्वारा लगभग 50 वर्षो तक देवी की पूजा अर्चना की गई। माता हिंगलाज भटगांव जमींदार की कुलदेवी के रूप मे मानी जाती है। प्रभादेवी के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनकी छोटी बहन इंदिरा कुमारी ने पूजा अर्चना जारी रखी। इसके बाद उनके गोद पुत्र पुष्पेंद्र प्रताप सिंह ( छोटू दादा) द्वारा पूजा अर्चना किया जा रहा है। क्षेत्र मे यह बात देवसागर मंदिर के बारे मे चर्चित है कि आज भी मेला के दिन रात्रि 9 बजे के बाद कोई भी आदमी मेला परिसर मे नही ठहरता। कहा जाता है कि क्योकि देवी का वाहन शेर आता है और बलि दिए हुए बकरे का खून चाट कर पूरा साफकर देता है।
मां हिंगलाज के दरबार मे आज लगेगा मेला, माता का आशीर्वाद लेने दूर दूर से पहुंचेंगे श्रध्दालु
सुबह 5 बजे से रात्रि 8:30 बजे तक लगता है मेला
