जब प्रशासन के मुखिया को डेंगू से सरक्षा हेतु सडक़ों पर उतरना पड़े तो यह शहर सरकार के मुँह पर एक करारा तमाचा है।ऐसा ही थप्पड़ मुझे अपनें गालों पर भी महसूस होता है जब पुलिस प्रशासन द्वारा यातायात सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है।आज जब हम आजादी के अमृत काल से गुजर रहे हैं क्या सचमुच हमें यातायात सुरक्षा सप्ताह समझने की दरकार है? रायगढ़ मे तो है कम से कम सडक दुर्घटनाओं को देखकर लगता है।हम नियमों का सम्मान करना कब सीखेंगे।अब बात डेंगू पर करें तो शुक्र है ऐडीज मच्छर राजनीति नहीं जानते। वे बस गंदे ठिकाने जानते हैं।जहां वे फलफूल कर लोगों को संक्रमित कर सकें।फिर सरवाइव फार द फिटेस्ट की लड़ाई पर मिशन मोड मे काम करना शुरू कर देते हैं लेकिन राजनीतिक दलों ने इस डेंगू जैसी बीमारी का भी राजनीतिकरण कर डाला।ऐसा नहीं कि डेंगू अचानक अस्तित्व मे आया।इससे पूर्व भी हुआ था और उसमें मृत्यु भी हुई थी पर मुस्तैदी से उसे काबू कर लिया गया था।
आज फिर शहर डेंगू की चपेट मे है। उसकी भयावह स्थिति ने एक बार फिर कोरोना काल की याद दिला दी।विपक्ष ने इसे भी मुद्दा बनाकर इसका ठीकरा महापौर के मत्थे मढक़र अविश्वास प्रस्ताव तक ले आए जबकि इसका हश्र क्या होगा थोड़ी भी राजनीतिक सूझबूझ रखने वाला व्यक्ति समझ रहा था।यदि डेंगू इस शहर मे फैल चुका है तो महापौर ही क्यों उन तमाम वार्ड के पार्षदों की जिम्मेदारी भी उतनी ही बनती है।क्या वे सब इस्तीफा देंगे अपनी नाकामयाबी पर?
असमय काल कलवित एक युवा की मौत पर आक्रोशित होकर सर्वसमाज की बैठक बुला ली जाती है जो चुनावी मौसम मे सियासी रोटियां सेकने की भीड़ मे तब्दील हो जाती है और कलेक्ट्रेट पहुंचने पर संवदनाओं का चोला उतारकर जिन्दाबाद और मुर्दाबाद के नारे लगाने लगी। डेंगू और उसके दंश से असमय मृत युवा के प्रति सारी संवेदनाऐं हाशिये पर भी चली गई।बेशर्मी की तब हद हो गई जब भाजपा के कार्यकर्ताओं के यह कहने पर कि उनके एक नेता पहुंचने वाले है थोडा इन्तजार करिए की याचना को खारिज करते हुए एक जिम्मेदार कांग्रेसी ने बेहयाई से यह कह डाला कि आपके नेता ने रायगढ़ के लिए क्या किया है जिसके लिए वे इन्तज़ार करें।इन पंक्तियों के माध्यम से मै कान्ग्रेस के उन्हीं नेताओं से पूछना चाहती हूँ कि आपने इस शहर के लिए क्या किया है?शहर की बात तो छोडि़ए वे अपने वार्ड के प्रति कितने निष्ठावान है कि उनके ही वार्ड डेंगू या कोरोना मे हाट स्पाट बन जाते हैं।
इस राजनैतिक डेगूं को लेकर सामने आई राजनैतिक प्रतिद्वंदिता से अलग किसी भी शहर की समस्याओं को लेकर उस शहर के नागरिकों की जागरूकता सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।इन मायनों मे रायगढ़ शहर की नागरिक चेतना की झलक उनके आचरण मे ही मिल जाती है डेंगू जैसे महामारीयों के लिये दस्तरख्वान हम बिछाते हैं और सफाई की अपेक्षा प्रशासन से करते हैं। हमें अपने अधिकार हर पल याद रहते है लेकिन जिम्मेदारीयों के प्रति…..
डेंगू या अन्य समस्याओं के लिए सर्वप्रथम हम जिम्मेदार हैं इसके बाद ही अन्य प्रशासनिक अमलो का नम्बर आता है लेकिन हो उससे उलट रहा है।दो या चार साल के लिए इस शहर मे आने वाले प्रशासनिक अधिकारी अपनी कार्यशैली से कितना कुछ कर छाप छोड़ जाते हैं और हम इस शहर मे जन्म लेकर उम्र गुजार देने वाले उसका शतांश भी नहीं कर पाते।शहर से प्रेम करना कब सीखेंगे हम?