रायगढ़। 88 वर्षीय राम दुलारी के निधन के साथ ही मित्तल परिवार का वट वृक्ष ढह गया। राम दुलारी के निधन के साथ ही आठ भाई बहनों की पीढ़ी का अंतिम दीपक बुझ गया। इस उम्र में राम दुलारी का स्वास्थ्य ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं था। 35 वर्ष पूर्व सन 1989 में पति स्व किरोड़ीमल की मृत्यु के बाद माता राम दुलारी ने भी अपने घर में पिता का फर्ज निभाया। पुत्र पुत्री नाती पोते पोतियों से भरे परिवार को सहसा श्रीमती रामदुलारी मित्तल के निधन से ना केवल उन्हें बल्कि स्नेहीजन, रिश्तेदार को भी गमगीन कर गया है। मंगलवार ग्यारस का दिन सुबह सुंदरकांड के अध्ययन हेतु जैसे ही पूजा स्थल पहुंची वैसे ही परलोक सिधार गई। मंगलवार एवं ग्यारस के दिन जाने का उन्हें पूर्वाभाष भी था।
रामदुलारी देवी बहुत ही धार्मिक महिला थी। घाटा वालाजी हनुमान जी की परम भक्त रामदुलारी मृत्यु के पूर्व तक दीनेश्वर महादेव मंदिर व शक्ति गुड्डी चौक स्थित भरतकूप शिवालय में जाना दिनचर्या में शामिल था। झारखंड राज्य के घाटशिला के प्रतिष्ठित व्यवसायी गिरधारी लाल रामस्वरूप परिवार में जन्मी चार भाइयों की बहन रामदुलारी का विवाह रायगढ़ के मित्तल परिवार के प्रतिष्ठित कपड़ा ब्यावसायी कुंदन लाल के बड़े पुत्र किरोड़ीमल अग्रवाल से हुआ था। राम दुलारी को मित्तल परिवार की बड़ी बहू बनने का सौभाग्य मिला। सुशील, उदार हँसमुख धार्मिक प्रवृत्ति की बहू के आगमन से ससुर कुन्दनलाल व देवर राधाकिशन, गोपी सागर ननदे फूला,लाली,सेवा,अंगूरी फुले नही समाये जिन्हें भाभी से माँ भाभी दोनो का दुलार मिला और रामदुलारी ने भी उनकी परवरिश भी अपने बच्चो की तरह पूरे लग्न से की। 6 पुत्री दो पुत्र की मां रामदुलारी की स्मरण शक्ति अद्भुत रही एवं यह शक्ति मृत्यु पर्यंत बनी रही। राम दुलारी शहर के सभी धार्मिक सामाजिक आयोजनो में पूरी आस्था, श्रद्धा से शामिल होती रही। राम दुलारी ने जीवन में दान धर्म के नियम का पूरी शिद्दत से पालन किया। माता राम दुलारी के दान एवं सेवा के संस्कार का पालन करने के लिए
दोनो पुत्र बजरंग एवं कमल भी पूरी तरह से माँ का साथ देते रहे। श्रीमती रामदुलारी ने शहर के धर्म संस्थान में देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित करने में रुचि दिखाई। चंद्रपुर स्थित चंद्रहासिनी मंदिर प्राँगण में स्थित विशाल हनुमान जी की प्रतिमा सिटी कोतवाली सामने मां देवसर दुर्गा, बैकुंठपुर के राम मंदिर के अंदर रणकेश्वरी देवी की मूर्ति स्थापना करने में तथा इन मंदिरों में होने वाले पर्व धार्मिक उत्सव में भी उनकी सहभागिता रही। छोटे भाई जगदीश को भी घाटशिला से रायगढ़ बसाने में उनकी बहन राम दुलारी की अहम भूमिका रही। जहाँ राम दुलारी के लिए रायगढ़ ही सुसराल था वही भाई जगदीश का हंडी चौक स्थित घर राम दुलारी के लिए मायका था। अपने छोटे भाई जगदीश के दोनों पुत्र संजय, गणेश से सदैव पुत्रवत मोह रखने वाली बुआ रामदुलारी का अंतिम समय तक विशेष लगाव रहा। शहर के धार्मिक कार्यों, पूजापाठ से जुड़ी श्रद्धालु महिलाओं के मध्य राम दुलारी की एक विशिष्ट पहचान रही। मिलन सरिता, सेवा को आत्मसात करने वाली राम दुलारी को शहरवासियों से भरपूर सम्मान मिला। धार्मिक संस्थाओं से जुड़ी महिलाओं का यह मानना है कि धर्मपरायण श्रीमती रामदुलारी ने बैकुंठ धाम जाने के लिए बड़ी ग्यारस के शुभ दिन का चयन किया है क्योंकि इस दिन प्रात: स्नान के बाद पूजा घर में ही उन्होंने नश्वर संसार से विदाई ली। परिवार जनों के लिए रामदुलारी देवी ने मुखिया की तरह मुखिया मुख सो चाहिए खान पान को एक- नियम का पालन किया। अपने व्यक्तित्व मधुर व्यवहार के जरिए राम दुलारी ने परिवार के सदस्यों के मध्य मधुर संबंधों एवं परस्पर मेलोजोल की शहरवासियों के सामने अनोखी मिसाल रखी। जीवन में राम दुलारी ने अतिथि देवों भव: का पालन किया घर मे आने वाले मेहमान रिश्तेदारो उनके अतिथि सत्कार को स्मरणीय बताते है।
अपनी बहु किरण विनीता को बेटियों से अधिक प्यार दुलार करने वाली राम दुलारी के निधन की वजह से बहुओं के अविरल धारा की तरह बहने वाले आंसू थमने का नाम नही ले रहे। पुत्र बजरंग, कमल पुत्री दामाद कांता-सोहन लाल, शकुन -स्वर्गीय सोहन लाल, निर्मला- प्रह्लाद राय, मंजू-सुशील, अंजू-आनंद, इनके बच्चे संजय, ध्रुव, मयंक, नीरज, हैप्पी, दर्शील रुंघे गले से बताते है कि श्रद्धेय राम दुलारी से जो अपनत्व मिला उसकी व्याख्या शब्दों में कठिन है उनकी बेटियां बताती है कि 35 वर्ष पहले पूज्य पिताजी गुजरने के बाद माँ ने उन्हें माता-पिता दोनों का प्यार दिया ना केवल पिता का सारा फर्ज पूरा किया बल्कि पिता की कभी कमी महसूस न होने दी।
घर मे प्रत्येक एकादशी को भजन कीर्तन व उपवास, शनिवार मंगलवार को हनुमान चालीसा व सुंदरकांड पढऩा इस प्रकार घर के सदस्यों को धार्मिक परम्पराओ, आस्था से जोड़े रखने वाली राम दुलारी की कमी उनके परिवार में कभी पूरी नहीं हो सकती। मित्तल परिवार के सदस्य माता रामदुलारी के पदचिन्हों का अनुशरण करते हुए हर वर्ष राजस्थान के घाटा बालाजी हनुमान का जाकर दर्शन करते है व प्रत्येक मंगलवार को शहर के सुभाष चौक स्थित हनुमान जी का दर्शन पूजन भी करता है। विधि विधान के साथ पूरीआस्था श्रद्धा से हर व्रत उपवास, त्योहारों का आयोजन करने वाली श्रीमती रामदुलारी के साथ प्रत्येक सदस्य मांगलिक, धार्मिक अनुष्ठान,आयोजन में उनके साथ पूरी लगन से शामिल होता रहा।
देवरानी विमला,अंगूरी व लीलादेवी के लिये देवी तुल्य ममतामयी जेठानी राम दुलारी सदैव पूज्यनीय रही। देवरानियों को भी सगी बहनों से ज्यादा और उनके बच्चों पर भी अपने बच्चे जैसा ही भरपूर स्नेह बरसाया। दादी की सेवा और हमेशा उनका पल पल ख्याल रखने वाले पोते गौरव आलोक,अंकित प्रपौत्र अरनय व अनय के लिए दादी का यूं चला जाना उन्हें असीम लाड़ दुलार से वंचित व पूरे घर को सूना कर गया। अंतिम यात्रा के दौरान उनके समीप नारियल डाब रखने वाले बड़े पोते गौरव ने भीगी पलकों से बताया कि दादी ने रात को नारियल पानी पीने की इच्छा जताई थी लेकिन स्वास्थ्य गत नजरिए से रात को नहीं सेवन करा पाया और सुबह तो दादी चल बसी थी। शहर की लगभग सभी धार्मिक, सामाजिक,राजनैतिक व्यापारिक संस्थाओं ने श्रीमती रामदुलारी मित्तल के बैकुंठगमन पर शोक प्रगट करते हुए भावभीनी श्रध्दांजलि दी है। वैसे तो इस नश्वर संसार से जाना सबको है पर दान, धर्म, परमार्थ को लक्ष्य बनाकर आदर्श जीवन जीने की मिशाल बनने वाली श्रीमती रामदुलारी को यू ही चले जाना स्नेहीजन, शहर वासियों की आंखों को नम कर गया।
जाने वाले फिर नही आते जाने वालों की याद आती है
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा ऐसा
शत शत नमन,,,,,
मां राम दुलारी के लिए मित्तल परिवार जनों के अंतर्मन की आवाज
ये तो सच है कि भगवान है..
है मगर फिर भी अनजान है
धरती में रुप माँ बाप का
उस विधाता का ही निर्माण है
रही आप मित्तल परिवार की वट वृक्ष..
अथक मेहनत लगन और प्रेम से अपनी हर शाखाओं को सींच माली बन हिफाजत की…
हम सभी को अच्छे संस्कार देते हुए सच की राह पर चलना सिखाया…
आपने सबको सदा ममता के आँचल में रखा…
हम सबने ईश्वर को नहीं देखा माँ के रुप में आप में ही ईश्वर को देखा..
पहले आप माँ रुप में मिली
अब देवी माँ हो गई….
कभी न भुला पाएंगे हम आपको
नम आँखों से बह रहे श्रध्दासुमन के पुष्प
आपके श्री चरणों में समर्पित करते है
जाने वाले फिर नही आते जाने वालों की याद रह जाती है…
आपके बताये,संस्कारों की राह में बढ़ते रहे सदा
ऐसा आशीर्वाद देना..
माँ तुझे नमन
शोकाकुल
हम है आपके
कान्ता- सोहन लाल बिलासपुर, शकुन्तला- स्व शंकर लाल खेतान, शुभम अग्रवाल अम्बिकापुर, निर्मला प्रहलाद राय बंसल, मंजु सुशील कुमार कटक, अंजु आनन्द गर्ग अहमदाबाद, उर्मिला सूर्यकान्त सुरत, प्रमिला- विरेंद्र अहमदाबाद, पुष्पा- जयप्रकाश झारसुगुडा, किरण अशोक टाटानगर, उषा- पवन कलकत्ता, सुशीला अनिल गोंदिया, सुनीता प्रदीप कटक, अनिता दिनेश सम्बलपुर, संगीता शेखर नागपुर, पुजा नीरज सुरत, अंकिता अभिषेक सुरत, रश्मि गौरव, स्वाति आलोक, स्नेहा अंकित