धर्मान्तरण हमारे देश का एक ऐसा मुद्दा है जो जटिल तो बहुत है पर मुखर नहीं।न कोई खास ध्यान आकर्षण और न ही कोई खास बहस।भारत की लचीली कानून व्यवस्था धर्मान्तरण जैसे कई मुद्दों को अच्छी खासी व्यवस्था बना कर देती है,धर्म चुनाव के प्रति व्यक्तिगत अधिकार,इन मुद्दों का खुल कर विरोध न होनें का मुख्य कारण हैं।लेकिन दबी ज़ुबान पर तो कानून नहीं चलता,गली मोहल्ले, नुक्क्ड़ पर आये दिन धर्मान्तरण पर मुद्दे अब सुलग रहे हैं।कई जगह तो आक्रोश बढ़ चढ़ कर अपने चरम पर है।पिछले दिनों हुई रायगढ़ की घटना जिसमें एक मोहल्ले के घर में चल रही धर्मान्तरण की गतिविधि को जैसे ही फेसबुक पर लाइव किया गया कई नजऱें उसपर टिक गईं,कारण भारी मात्रा में पुलिस बल के साथ जय श्री राम की गूँज और मकान से एक एक कर निकलते लोग। अब इस सारे आडंबर को देख कर प्रत्येक व्यक्ति के मन में कुछ सवाल ज़रूर गहरा रहे हैं कि आखिर ये इतने लोग इनके झाँसे में आते कैसे हैं?आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है या कहें लालच है जो अपने धर्म से भी भटका देती है?और ऐसा इन लोगों के पास कौन सा अलादीन का चिराग है जो लोगों का दुख कष्ट हर लेता है?क्या दूसरा धर्म बदलना अपने धर्म पर बने रहने से ज्यादा आसान और टिकाऊ है?आखिर ये कई कई परतो के नीचे दबा मुद्दा क्यों इतना चुप चाप रहता है पर असर गहरा देता है।आइये जानते हैं कलम की नजऱ से।
धर्मान्तरण की जड़-जैसा की हम सब जानते हैं कि भारत की एकता अखंडता और सौहार्द केवल और केवल उसकी संस्कृति पर टिकी है और इसे तोडऩा ही भारत की समृद्धि को तोडऩे का एक मात्र उपाय है और यह समृद्धि का स्त्रोत सनातन सभ्यता है जिसका लोहा दुनिया मानती आई है। तर्क, विज्ञान और आध्यात्म का संगम जो भारतीय सनातन संस्कृति में है उसी का स्वरूप नालंदा जैसे विश्व विद्यालय हैं जहाँ सम्पूर्ण विश्व शिक्षा प्राप्त करने हेतु ललायित था।उसे तोड़ा गया,जलाया गया पर मानस पटल पर अंकित स्मृतियों को नहीं मिटाया जा सका और बाहरी आक्रमण मन और बुद्धि के लेवल पर आकर फेल हो गये,तब एक ही तरकीब उभर कर आई कि भारत की संस्कृति को तोड़ा जाये पर कैसे?तोडऩा तो नामुमकिन सा था,तब एक नई तरकीब आई कि अब संस्कृति को तोडऩा नहीं मरोडऩा है और दिशा हीन करना है तभी उसे तोडऩा सफल होगा। और इसी के बाद शुरुवात हुई कमज़ोर कडिय़ों को खोजने की उनके ज़ख्मों को कुरेदने की और उन्हें एक नई आज़ाद दुनिया और खुलेपन के सपने दिखाने की।यकीन मानिये ये आसान नहीं था पर वो कहावत तो सुनी होगी आपने कि ‘करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान।’ और आखिऱकार लालच की रस्सी नें सनातन सभ्यता पर निशान बनाने शुरु किये।
धर्मान्तरण के कारण- मेरी कलम की नजऱ में धर्मान्तरण का मुख्य कारण है जातिगत भेदभाव और शोषण,गरीब वर्ग को इतना शोषित किया गया कभी जाति,कभी अवसर,कभी अधिकारों का दोहन,कभी राजनीति और ये सारे समीकरण मिल कर एक ऐसी स्थिति बना चुके थे जिसमें धर्म से भटकना तो क्या आत्महत्या जैसे कदम उठ जाना भी कोई बड़ी बात न थी।धर्म बदलने के बदले आर्थिक सहयोग,बीमार को इलाज,बराबरी का दर्जा और उस शोषण करने वाले समाज से सदैव के लिए छुटकारा,कौन नहीं चाहेगा।बस यही है रस्सी के गहरे निशान बनाने की वजह।
आज के समय जो स्थिति हम देख रहे हैं ये अचानक बनने वाली स्थिति नहीं,अब धर्मान्तरण एक ऐसा मुद्दा है जो दीमक की तरह सनातन की नीव को खोखला कर रहा है,नीव खोखली तो ईमारत कहाँ की?और जब ईमारत नहीं तो ज़मीन कैसी?और जब ज़मीन ही नहीं बची तो बंदे किसके?आज मेरी कलम चिंतित है क्योंकि स्थिति गंभीर है,और समाधान केवल एक कि दीमग को साफ किया जाये और अपनी नीव मजबूत की जाये अर्थ ये कि वेदों की ओर चलें अपनी सभ्यता से जुड़ें उसे समझें,उसे संभाले और जो भटक गये हैं उनकी घर वापसी की राह मजबूत करें और वापसी ही काफी नहीं समाज में उनकी पुन: स्थापना की व्यवस्था पुख्ता की जानी चाहिए। धर्मान्तरण कोई समस्या से ज्यादा साजिश है जिसे समझना और सुलझाना बड़ा ही जटिल है पर नामुमकिन नहीं,जब तक धर्म की प्रधानता मुखर नहीं होगी इस तरह की साजिशें चलती रहेंगी और समाज पर चोट करते रहेंगे।
कविता शर्मा
घरघोड़ा