रायपुर। इंडियन एयरफोर्स के रिटायर्ड विंग कमांडर महाबीर ओझा (एमबी ओझा) का 89 उम्र में रविवार को निधन हो गया। वह रायपुर के मौलश्री विहार के रहने वाले थे। ओझा के सामने ही ढाका में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने इंडियन आर्मी के आगे सरेंडर किया था। प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भी एमबी ओझा के निधन पर दुख व्यक्त किया है। ओझा पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। सोमवार को उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है।
रूक्च ओझा के बेटे संतोष ओझा ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनके पिता छत्तीसगढ़ के इकलौते एयरफोर्स अफसर थे, जिन्होंने 1965, 1971 और श्रीलंका में हुए ऑपरेशन में भी हिस्सा लिया। संतोष ओझा ने अपने पिता से जुड़ा एक किस्सा सुनाया, 1971 की जंग के समय इंडियन एयरफोर्स पाकिस्तान में दाखिल हो चुकी थी। वहां की एयरफोर्स कॉलोनी में भारतीय अफसर टहल रहे थे। पाकिस्तानी एयरफोर्स के अधिकारी भाग चुके थे। तब ओझा पाकिस्तान एयरफोर्स के अधिकारियों के घर के बाहर लगे नेम प्लेट साथ ले आए। संतोष ने बताया कि हम बचपन में होली के दिन दुश्मन देश के इन नेम प्लेट को अपने क्वार्टर के बाहर लगाकर खेला करते थे। बेटे ने याद किया कि जब इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी। तब पिता की उम्र करीब 85 साल थी, उनकी तबीयत ठीक नहीं थी मगर 13 घंटे टीवी के सामने बैठकर हर पल की अपडेट ले रहे थे। इसके अलावा जब भारतीय वायु सेवा के विंग कमांडर अभिनंदन को भारत वापस लाने में कामयाबी मिली, तब एमबी ओझा के आंखों में आंसू थे। उस दिन को याद करते हुए बेटे संतोष का गला भर आया।
इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर यानी आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने साइन किए थे। यह भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ़ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की मौजूदगी में हुआ। उस समय पिछली पंक्ति में रायपुर के रूक्च ओझा भी मौजूद थे। अरोड़ा ने पहले गार्ड ऑफ ऑनर लिया उसके बाद अरोड़ा और नियाजी ने मेज पर बैठ कर आत्मसमर्पण के दस्तावेजों की 5 प्रतियों पर साइन किए। नियाजी के पास कलम भी नहीं थी। उन्हें एक भारतीय अफसर ने अपनी कलम दी। वर्दी पर लगे बिल्ले हटाए और अपनी रिवाल्वर निकालकर जनरल अरोड़ा को सौंप दी। ये सरेंडर ढाका के रेसकोर्स मैदान में हुआ।
जिस ऐतिहासिक तस्वीर में पीछे रूक्च ओझा खड़े हैं, ये तस्वीर इंडियन आर्मी के चीफ के दफ्तर में लगी है। ये भारतीय सेना के सबसे अहम कार्यालय की दीवार पर है। इसी तस्वीर के नीचे अब इंडियन आर्मी के चीफ उपेंद्र द्विवेदी विदेशी डेलीगेट्स से मिलते हैं। हर बार इसी तस्वीर के साथ आधिकारिक मुलाकात की फोटो जारी होती है। ये भारतीय सेना के गर्व का हिस्सा बन चुकी है। एमबी ओझा एयर ट्रैफिक कंट्रोल और रडार सिस्टम पर काम किया करते थे। रडार के जरिए ही एयरफोर्स को दुश्मन के फाइटर जेट के बारे में पता चलता है। 14 दिसंबर को भारतीय सेना को पता चलता कि ढाका के गवर्नमेंट हाउस में दोपहर 11 बजे एक मीटिंग होने वाली है।
भारतीय सेना ने तय किया कि मीटिंग के वक्त ही गवर्नमेंट हाउस पर बम बरसाए जाएंगे। इसके बाद ओझा की टीम की निगरानी में इंडियन एयरफोर्स के मिग-21 विमानों ने उड़ान भरी। इन फाइटर जेट्स ने गवर्नमेंट बिल्डिंग की छत उड़ा दी। उस मीटिंग में तब के पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के सेना प्रमुख जनरल नियाजी भी मौजूद थे, जो उस हमले में बाल-बाल बच निकले। इंडियन एयरफोर्स के उस हमले के बाद पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से घुटनों पर आ गई।
16 दिसंबर 1971 को कभी पूर्वी पाकिस्तान के रूप में पाकिस्तान का हिस्सा रहे बांग्लादेश का एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ। पाकिस्तानी सेना पर भारत की जीत और बांग्लादेश के गठन की वजह से हर साल 16 दिसंबर को भारत और बांग्लादेश में इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दरअसल, पाकिस्तानी सेना के बांग्लादेशी (उस समय पूर्वी पाकिस्तान) लोगों पर जुल्मो-सितम को लेकर ही भारत इस जंग में कूदने को मजबूर हुआ था। भारत के प्रतिरोध को लेकर पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव बढ़ा और आखिर में भारतीय सेना की कार्रवाई के आगे पाकिस्तान के हौसले पस्त हुए। 16 दिसंबर 1971 को ही इतिहास के सबसे बड़े आत्मसमर्पण के रूप में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे।
1971 जंग के शामिल महाबीर का राजधानी में हुआ निधन
