रायगढ़। बुधवार को खरना छठ के दौरान अंचल में घर-घर छठी मईया के पारंपरिक गीत कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत… से गूंजयमान हो रहा था। इस दौरान अंचल में छठ महापर्व मंगलवार के नहाए-खाए से शुरू हो गया है। जिससे बुधवार को केलो नदी के घाट पर व्रति महिलाओं ने खरना पूजा किया, इसके बाद घर जाकर खीर का प्रसाद तैयार कर चंद्र दर्शन के बाद ग्रहण किया। वहीं गुरुवार शाम को डूबते सूर्य को पहला अघ्र्य दिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि सूर्य की उपासना छठ महापर्व करने वाली व्रती महिलाओं ने बुधवार को पूरे दिन निर्जला व्रत रख कर शाम को केलो नदी के घाट पर खरना पूजा कर सूर्यदेव की अराधना उत्साह के साथ शुरू कर दिया है। व्रत धारण करने वाले श्रद्धालु बुधवार को मिट्टी से बाल धोकर पूरे दिन निर्जला व्रत रहीं। वहीं शाम को नदी व तालाबों में स्नान कर घाट पर खरना पूजा किया। इसके बाद गुड़-चावल का खीर एवं पूड़ी का प्रसाद तैयार कर रात में चंद्र दर्शन के बाद प्रसाद को ग्रहण किया। इस व्रत को रखने वाले लोग चार दिनों तक संयम-नियम का पालन करते हैं। भक्त बताते हैं कि छठ मईया के नियमों के विरूद्ध रहकर पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी नहीं होती। इसलिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ पवित्र नियमों का ख्याल रखते हुए करते हैं। वहीं गुरुवार शाम को डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। इसके लिए व्रतियों ने बुधवार को पूरे दिन पूजा सामान व फल सहित अन्य सामानों की खरीददारी की। इस दौरान बाजार में गहमा-गहमी का माहौल रहा। इस बार बाजार में छठ पूजा के लिए कलकत्ता से भारी मात्रा में नारियल और डोब नीबू मंगाया गया है। जिसकी जमकर खरीददारी की गई।
षष्ठी तिथि के दिन भगवान सूर्य को देवी के रूप में पूजा की जाती है। इसके बारे में मान्यता है कि किसी समय में परशुराम के पिता जमदगनी ऋषि जगंल में भ्रमण कर रहे थे। उस समय सूर्य की तपन काफी तेज थी। उसी दौरान परशुराम की मां रेणुका तुलसी चबूतरा में पूजा कर रही थी जो सूर्य की तपन के चलते पसीने से लथपथ थी। यह देखकर जमदगनी ऋषि को सूर्य पर क्रोध आ गया और उन्होंने सूर्य को श्राप देते हुए कहा कि तुम भी एक दिन के लिए स्त्री बन कर पूजे जाओगे, तब तुम्हे स्त्रियों का कष्ट समझ में आएगा। तभी से षष्ठी तिथि के दिन सूर्य भगवान को छठ मईया के रूप में पूजा की जाती है। साथ ही जो भी महिला-पुरुष पूरे विधि-विधान से छठ मईया की पूजा करते है उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
रायगढ़। बुधवार को खरना छठ के दौरान अंचल में घर-घर छठी मईया के पारंपरिक गीत कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत… से गूंजयमान हो रहा था। इस दौरान अंचल में छठ महापर्व मंगलवार के नहाए-खाए से शुरू हो गया है। जिससे बुधवार को केलो नदी के घाट पर व्रति महिलाओं ने खरना पूजा किया, इसके बाद घर जाकर खीर का प्रसाद तैयार कर चंद्र दर्शन के बाद ग्रहण किया। वहीं गुरुवार शाम को डूबते सूर्य को पहला अघ्र्य दिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि सूर्य की उपासना छठ महापर्व करने वाली व्रती महिलाओं ने बुधवार को पूरे दिन निर्जला व्रत रख कर शाम को केलो नदी के घाट पर खरना पूजा कर सूर्यदेव की अराधना उत्साह के साथ शुरू कर दिया है। व्रत धारण करने वाले श्रद्धालु बुधवार को मिट्टी से बाल धोकर पूरे दिन निर्जला व्रत रहीं। वहीं शाम को नदी व तालाबों में स्नान कर घाट पर खरना पूजा किया। इसके बाद गुड़-चावल का खीर एवं पूड़ी का प्रसाद तैयार कर रात में चंद्र दर्शन के बाद प्रसाद को ग्रहण किया। इस व्रत को रखने वाले लोग चार दिनों तक संयम-नियम का पालन करते हैं। भक्त बताते हैं कि छठ मईया के नियमों के विरूद्ध रहकर पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी नहीं होती। इसलिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ पवित्र नियमों का ख्याल रखते हुए करते हैं। वहीं गुरुवार शाम को डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। इसके लिए व्रतियों ने बुधवार को पूरे दिन पूजा सामान व फल सहित अन्य सामानों की खरीददारी की। इस दौरान बाजार में गहमा-गहमी का माहौल रहा। इस बार बाजार में छठ पूजा के लिए कलकत्ता से भारी मात्रा में नारियल और डोब नीबू मंगाया गया है। जिसकी जमकर खरीददारी की गई।
षष्ठी तिथि के दिन भगवान सूर्य को देवी के रूप में पूजा की जाती है। इसके बारे में मान्यता है कि किसी समय में परशुराम के पिता जमदगनी ऋषि जगंल में भ्रमण कर रहे थे। उस समय सूर्य की तपन काफी तेज थी। उसी दौरान परशुराम की मां रेणुका तुलसी चबूतरा में पूजा कर रही थी जो सूर्य की तपन के चलते पसीने से लथपथ थी। यह देखकर जमदगनी ऋषि को सूर्य पर क्रोध आ गया और उन्होंने सूर्य को श्राप देते हुए कहा कि तुम भी एक दिन के लिए स्त्री बन कर पूजे जाओगे, तब तुम्हे स्त्रियों का कष्ट समझ में आएगा। तभी से षष्ठी तिथि के दिन सूर्य भगवान को छठ मईया के रूप में पूजा की जाती है। साथ ही जो भी महिला-पुरुष पूरे विधि-विधान से छठ मईया की पूजा करते है उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।