रायगढ़। रायगढ़ विधायकी टिकट की प्रत्याशा सिर्फ प्रचार तक सीमित, शहर के विकास और उसकी समस्या के साथ कहीं नहीं दिखते प्रत्याशा वाले नेताशहर में कुल 48 वार्ड और उसके कम-से-कम 40 पार्षद हर बार किसी न किसी गुंताड़ा के मौजूद रहते हैं या फिर उनके ही लोग। ये वह हैं जो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर खुद के लिए कार्य करते हैं। तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर का विकास क्यों नहीं हो रहा और क्यों नहीं होगा। आम शहरी इनके सामने बेबस है क्योंकि जब इनकी ही पार्टी के लोग इन्हें कुछ बोल नहीं पाते तो आमजन की क्या मजाल ( आरक्षित सीटों पर भी चहेते को बैठाना)।
विधानसभा चुनाव के समय नगर निगम और पार्षदों के बारे में चर्चा का उद्देश्य विधायक से है जिससे रायगढ़ के उत्थान के लिए कई उम्मीदें लगी रहती हैं। रायगढ़ विधायक से शहरी क्षेत्र के लोगों से काफी उम्मीदें रहतीं है क्योंकि औद्योगिक नगरी में बेलगाम प्रशासनिक महकमे के बीच विधायक ही आमजन की आवाज़ है।
2 दशक पहले तक पार्टी के नेता समाज के चिकित्सक, समाजसेवी, वरिष्ठ खिलाड़ी, सेवानिवृत्त कुशल अधिकारी जैसे लोगों के पास विधायकी के टिकट की पेशगी करते थे। तब टिकट के लिए मारामारी नहीं थी। और अब तो 1 सीट के पीछे दर्जनभर से अधिक दावेदार जो सिर्फ प्रचार के दम पर टिकटाकांक्षी हैं।
बैनर-पोस्टर से लेकर सोशल साइट्स में इनकी बेशर्मी तब बढ़ जाती है जब वह बिना किसी मुद्दे के अपनी दावेदारी पेश करते हुए किसी दिन-त्यौहार की शुभकामना संदेश देते हैं। आत्ममुग्धता की रेस इस बार रायगढ़ में भाजपा-कांग्रेस में जबरदस्त है। इसके लिए वो अपने बजट की भी तिलांजलि दे दे रहे पर यहां हर बार उन्हें गच्चा ही मिल रहा पर क्या करें बेचारे आत्ममुग्धता के आगे विवश हैं।
रायगढ़ के मुद्दों और उसकी समस्या के बारे में कभी चर्चा नहीं होती हां इस बारे में जरूर होती कि कौन चुनाव लड़ रहा, कैसे लड़ रहा, कैसे टिकट मिलेगी। कई दफे लोग आपस में ही समर्थन की आग में खुद को झोंक देते हैं। इतनी ऊर्जा अच्छी राजनीति में झोंकते तो परिदृश्य कुछ और ही होता।
इस बार भाजपा और कांग्रेस से दर्जनों दावेदार अपनी ढपली से अपना राग सुना रहे हैं। पहली बार विधायक बने प्रकाश नायक को अपनी ही कांग्रेस पार्टी से चुनौतियां मिलनी शुरू हो गई है। कोई पैसे का जोर लगा रहा तो कोई सीधे प्रकाश को टारगेट। फिलहाल वह अपनी चाल में मस्त हैं और विरोधियों के तमाम जाल से बचे जा रहे हैं। सीटिंग विधायक का टिकट कटवाने में कई अदृश्य शक्तियां सक्रिय हो गईं है।
भाजपा में प्रत्याशी को लेकर अब खुलेआम खींचतान, गुटबाजी, बिगड़े बोल, आयोजनों में बेशर्मी से भाग, आंदोलन में बिना बुलाये फोटो खिचाओं प्रतियोगिता अर्थात दिखाई देने के तमाम हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। विज्ञप्तिवीर भाजपाईयों की कलई इस बार बड़ी जल्दी खुल गई। 5 साल की शीतनिद्रा के बाद भाजपाइयों का अल्ड्रेनिल रश से किसी को भी रश्क़ हो जाएगा। यहाँ पुराने धुरंधर मौजूद हैं जो समर्थन की आड़ में विरोध की चिंगारी लगा देते हैं। मजेदार बात यह कि इन्हें सब जानते हैं पर पता नहीं कौन से मोहनी के आगे विवश हैं। खैर भाजपा रायगढ़ सीट से अति आत्मविश्वास से लबरेज है इसमें कोई दो राय नहीं पर कांग्रेस भले ही बिखरी हो पर भाजपा से कम। रायगढ़ में भाजपा संगठन अन्य जिलों से ज्यादा गुटों, व्यक्तियों में बटी है। जैसे-जैसे चुनाव आएगा पार्टी में अवकलन होगा निश्चित है यही है अथ श्री रायगढ़ भाजपा कथा। इसके उलट रायगढ़ कांग्रेस चुनाव से ऐन पहले समाकलित होने का इतिहास रखती है।
रायगढ़ शहर के बड़े मुद्दे
केलो डेम- केलो डेम बन तो गया पर इससे किसानों को क्या मिला। इसकी नहर कब पूरी बनेगी।
सपनई जलाशय-इसी तरह सपनई जलाशय का हेडवर्क पूरा हो गया है नहर नहीं होने के कारण इसका लाभ पूर्वांचल को नहीं मिल रहा।
प्रदूषण- प्रदूषण जिले का सबसे बड़ा मुद्दा है रायगढ़ का देश में प्रदूषण को लेकर काफी नाम है। यहाँ केलो नदी का जल प्रदूषित है। पर विकास की रथ में चढ़े जनप्रतिनिधियों ने उद्योगों को सलाम ठोका है न कि प्रदूषण कम करने के लिए जिम्मेदारों को चेतावनी या आग्रह किया।
रिंग रोड- औद्योगिक नगरी में हर दिन कोई न कोई सडक़ हादसे में जान दे रहा। भारी वाहन बेलगाम हाईवे से लेकर शहर/ नगर में घूम रहे। अभी तक न रिंग रोड बना न ही अच्छी सडक़े।
मेडिकल सुविधा-मेडिकल कॉलेज के नाम रायगढ़ का मेडिकल कॉलेज एक धब्बा है। यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का हमेशा टोटा रहता है। जिला अस्पताल की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।
नाला- शहर के 9 प्राकृतिक नाले जो चौड़ीकरण की बांट जोह रहे बिलंब हुआ तो ये गायब भी हो जाएंगे।
तालाब- तालाब जिस पर हर किसी नजऱ है। तालाबों के संदर्भ में कोई आवाज़ उठाता नहीं दिखता।
आईएसबीटी- दो दशक पुराना अंतरराज्यीय बस अड्डा आज तक नहीं बना। यात्री सुविधाओं से किसी को भी को साकार नहीं है। फिर चाहे वह केवड़ाबाड़ी का बस अड्डा हो या फिर सारंगढ़ बस अड्डा।
संजय काम्प्लेक्स- 14 करोड़ का टेंडर पास फिर भी संजय काम्प्लेक्स जस का तस पड़ा हुआ है।
सर्वसुविधायुक्त स्टेडियम- अमलीभौना के पास सर्वसुविधायुक्त अंतरराष्ट्रीय मापदण्ड के अनुसार स्टेडियम की योजना 14 साल पुरानी है। तत्कालीन कलेक्टर अमित कटारिया ने प्रारूप तैयार करवाया था और प्रस्तावित भूमि भी तय कर ली थी। तब से मामला अटका है।
चक्रधरनगर आरओबी- आधा शहर और लगभग सारे प्रशासनिक महकमे चक्रधर नगर क्षेत्र में हैं। फाटक होने से लोगों को काफी समस्या और अनावश्यक रूप से 2 किलोमीटर तक परिक्रमा करनी होती है। यहां रेलवे ओवर ब्रिज की मांग लोगों की पुरानी है।