सारंगढ़-बिलाईगढ़। प्रतिवर्ष विश्व मच्छर दिवस के रूप में मनाया जाता है। मच्छर दिवस के रूप में मनाना मतलब मच्छर के बारे में जानना, उसके काटने से कितने प्रकार की मच्छर जनित बीमारियां होती है। मच्छर पनपते कैसे है और बीमारियां फैलाती कैसे है इसके बारे में जनजागरुकता फैलाना ही इसका मकसद होता है। मच्छर जनित रोगो में मुख्यत: मलेरिया, फैलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जीका, जापानिस इंसेफेलाइटिस आदि बीमारियां होती है। यह बीमारी जानलेवा भी हो सकता है। मच्छर जनित रोगों की रोकथाम, नियंत्रण और समुदाय को जागरूक करते हुए उनकी सहभागिता बढ़ाना ही लक्ष्य होता है। स्कूलों में छात्र छात्राओं को जागरूक करना, जहां मच्छरों के काटने से होने वाले रोगी के बारे में बताया जाता ही है वही इनसे कैसे बचे इससे भी अवगत कराया जाता है। स्कूली बच्चों में सहभागिता बढ़ाने के लिए समय समय पर क्विज प्रतियोगिता, निबंध लेखन, रैली का आयोजन, नारे लेखन जैसे विषयों पर चर्चा की जाती है और बच्चो की जागरूक की जाती है। गावों में समुदाय की बैठके करके, महिलाओं की समूह के साथ चर्चा करके, ग्रामीण स्वास्थ्य समिति की बैठक करके आयुष्मान समिति की बैठकों में भी चर्चा करके सबको अवगत कराई जाती है। इन समूहों से चर्चा मतलब सबको स्वास्थ्य शिक्षा देना होता है। गृह भेट करना,घर की मुआयना करके देखना कही मच्छर पनपने के अनुकूलता तो नही है,देखना और घर वालो को समझना। आमतौर पर घर में या घर के आसपास बहुत से ऐसे जगह मिल जाता है, जहां मच्छर अपने अंडे देती है ऐसे स्थानों में पुराने बर्तन के, पुराने टायर, गमले, कूलर में बहुत दिनों तक पानी भरा हुआ रखना, गद्दे,पोखर,बोरिंग के पास या नल के पास पानी का जमा हुआ रहना मच्छर अक्सर ऐसे ही स्थिर पानी की खोज में रहते है। मच्छर के प्रजनन के लिए जमा हुआ पानी या हल्का मंद गति से बहता हुआ पानी ही पसंदीदा जगह होता है। रुका हुआ पानी की सतह में पानी साफ होता है। मच्छर दो प्रकार के होते है एक नर मच्छर और दूसरा मादा। मच्छर मादा मच्छर नर से साइज में कुछ बड़ा होता है और नर की तुलना में मादा ज्यादा दिन तक जीवित रहता है। मादा मच्छर खून पीता है और अपने वजन से तिगुना वजन तक खून को पिता है, जब तक उनका पेट नही भरता तक तक मादा मच्छर काटते रहता है और खून पीते रहता है। नर मादा की मिलन उड़ते समय हवा में होती है। मादा मच्छर के कारण ही मच्छर जनित रोग होता है। मादा मच्छर अपने अंडे रुके हुए पानी में देता है। मच्छर की चार अवस्थाएं होती है जिसमे अंडे, प्यूपा, लार्वा और एडल्ट मच्छर होता है। अंडे देने के बाद मच्छर 2 सप्ताह के भीतर एडल्ट हो जाता है। नर मच्छर एडल्ट होते ही प्रजनन करना प्रारंभ कर देता है और सप्ताह भर में मर जाता है जबको मादा मच्छर 6 सप्ताह तक जीवित रहता है। मादा मच्छर के काटने के दौरान ही परजीवी को मानव शरीर में छोड़ता है और एक सामान्य मनुष्य को संक्रमित करता है बहुत से मच्छर वायरस को फैलता है जैसे डेंगू वायरस,जीका वायरस,चिकनगुनिया वायरस है जबकि मलेरिया की बीमारी एक प्रकार की परजीवी जिसे प्लास्मोडियम कहते है एवम फाइलेरिया के बीमारी भी एक परजीवी से होता है जिसे आउचेरिया ब्रांकाफ्ताई एवम ब्रूसिया मलाई के कारण होती है। मच्छर जनित रोगों से बचाव के उपाय में 2 तरीके है पहला मच्छर के अंडे जब लार्वा के अवस्था में होते है उसी समय स्थिर पानी में लार्विसिडल पदार्थ डाले जिसमे मुख्यत मिट्टी तेल या जला हुआ मोबाइल ऑयल या फिर कोई लार्वा मारने की दवाई की छिडक़ाव,इसी अवस्था में पोखरों आदि में एक प्रकार की मछली होती है जिसे गंबूजिया मछली कहते है। पानी में डालने से मछली मच्छर के लार्वा को खा लेते है परिणाम जमे हुए पानी या स्थिर पानी की लार्वा मछली द्वारा खा कर नष्ट कर दी जाती है। दूसरी तरह जब मच्छर एडल्ट हो जाता है आमतौर पर जब मच्छर में पंख हो जाते है और पैर हो जाते है तब वह पानी को छोड़ते है क्योंकि मच्छर इस समय उडऩे के लायक हो जाते है इस अवस्था में प्रयास करने होते है मच्छर से कैसे बचे। डेंगू के मच्छर सूर्योदय के 2 घंटे एवम सूर्यास्त के ठीक पहले का समय उत्तम होता है जबकि मलेरिया के मच्छर देर रात को काटते है वैसे ही फाइलेरिया के मच्छर भी रात को काटते है इनसे बचने के लिए शाम होते ही कपड़े से शरीर को ढके, ज्यादा रंगीन कपड़े शाम को न पहने,ज्यादा ऑइली भोजन भी न ग्रहण करे,रात को सोते समय मच्छर दानी का प्रयोग करे, मच्छरदानी भी मेडिकेटेड होना चाहिए, मच्छर को भगाने एवम मारने के कई पदार्थ क्वायल, लिक्विड, अगरबत्तियां आज बाजार में उपलब्ध है।इसका प्रयोग करके हम मच्छर के काटने से बच सकते हैं। ग्रामीण अंचलों में शाम के समय नीम के पट्टी की धुएं करना, नीम के खली की धुएं करने से भी मच्छर भगाते हैं। शहरों के साथ आजकल ग्रामीण अंचलों में भी पक्की नालियां बनाई जा रही है लेकिन नियमित सफाई नही होने से मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल स्थान मिल जाते है। इस कारण समुदाय की जागरूकता एवं सहभागिता आवश्यक है। पंचायत स्तर पर भी मच्छरों के लार्वा को नष्ट करनेके लिए एवम मच्छरों की उत्पत्ति के रोकथाम के लिए अभियान नियमित रूप से चलते रहना चाहिए। गांव में नियमित रूप से स्वच्छता अभियान चलाए जाने चाहिए शहरी एवम ग्रामीण अंचलों में नागरिकों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए उनके व्हाट्सएप ग्रुप में सही समाचार प्रसारित होते रहना चाहिए सभी समाज सेवी और जनप्रतिनिधियों को भी अपने सफाई में ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के सभी संस्थाएं आयुष्मान आरोग्य मंदिर, गावों में पदस्थ सभी मैदानी अधिकारी, कर्मचारी, आगनवाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षक, पंचायत विभाग के कर्मचारी,जल संसाधन विभाग के ग्रामीण स्तर के कर्मचारी,मितानिन सबकी सम्मिलित प्रयास से ही मच्छरों की संख्या को कम किया जा सकता है तथा इनसे होने वाले रोगों की जानकारी,बचाव के तरीके,रोकथाम के उपाय करने से ही आम जनता को इनके रोगों से बचाया जा सकता है। ब्लॉक स्तर पर अंतर्विभागीय समन्वय भी एक अच्छे उपाय हो सकते है मच्छरों को मारने या भगाने के लिए।