रायगढ़। विधानसभा की तरह हर वार्ड से होंगे कई दावेदार, वार्ड के सक्रिय और समाजसेवा से जुड़े युवा इस बार ठोकेंगे दावाअगर रायगढ़ शहर अभी भी कस्बा है और जहां प्रदूषण से लोग त्रस्त हैं, पैदल चलने के रास्ते न बचे हों, सडक़-बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं तो इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हमारे जनप्रतिनिधि भी हैं। पूरे प्रदेश में टैक्स के नाम पर सबसे ज्यादा लूट-खसोट रायगढ़ नगर निगम में है और हमारे जनप्रतिनिधि मौन हैं। मोहल्ले के बड़े मुंडियों को साध कर और जरूरतमंदों पर निजी उपकृत्य कर ये चुनाव जीतने का फार्मूला खोज लेते हैं।
इन्हें मठाधीश कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि सालों से आधे से अधिक वार्डों में इन्हीं का कब्जा है। बीते निगम चुनाव में कई वार्डों में युवाओं ने पार्षद चुनाव जीता और कई में कड़ी चुनौती दी। पिछले बार कई वार्ड में मठाधीशों ने साम-दाम-दंड-भेद से अपने प्रतिद्वंद्वी युवाओं को बैठा दिया था।
लेकिन इस चुनाव संभवत: ऐसा नहीं होगा। डिजिटल युग और स्वीप के मतदाता जागरुकता अभियान का असर आमजन में हुआ है। मतदाता अब समझ चुके हैं कि मठाधीशों ने उनका शोषण किया है, जिस तरक्की को उनका वार्ड और शहर लायक था वह तरक्की उनके नेताओं ने किया। कितना भी छुपाएं मठाधीशों की अट्टालिकाएं, निवेश और जीवन शैली सब चुगली कर देती है।
एक समय था जब पार्षदो का मानदेय कम था (पहले 2200 फिर 7700) और पार्षद निधि भी कम ऐसे में इमानदारी से कार्य करने वाले बहुत कम ही रूचि लेते थे। पर ऐसे ही लोगों को जनप्रतिनिधि बनाने के लिए सरकार अब पार्षद का मानदेय 15000 रूपये प्रतिमाह और लाखों रुपये का पार्षद निधि दे रही है ताकि समाज में बेहतर करने की मंशा रखने वाले राजनीति की नर्सरी पार्षदी चुने। इसके बाद पार्षद द्वारा वार्ड में विकास कार्यों के प्रपोजल इत्यादि भी हैं। नई परिस्थितियों में अब हर वार्ड से सक्रिय युवा, समाजसेवी गुण वाले पार्षदी करने का मन बना लिये हैं। हमने कई युवाओं से बात की उन्होंने बताया कि जब मोहल्ले के सभी बड़े आयोजन हम अपने बूते करते हैं और पूरा मोहल्ला हमारा परिवार है तो हमें पार्षद क्यों नहीं बनाएगा। हर जगह लोग रिटायर होते हैं पर मठाधीशों से कुर्सी का मोह नहीं छूटता, जब नहीं छूट रहा तो हम करेंगे मोहभंग। हम पार्टी के लिए कुर्सी भी उठाएंगे, झंडा भी लहराएंगे और अपना दावा भी पेश करेंगे क्योंकि हम सक्रिय हैं और कुछ कर गुजरने का जज्बा है।
युवा दावा करते हैं जैसे विधानसभा चुनाव में एक सीट के पीछे कई दावेदार होते हैं वैसे अब हर वार्ड में कई दावेदार होंगे। पार्टियों को सोचना पड़ेगा कि वह मठाधीशों के साथ रहेंगे या फिर नए ऊर्जावान युवा को मौका देंगे। बीते चुनाव कई युवाओं ने मठाधीशों को धूल चटाई है। इस बार इतनी आसानी से अपना वार्ड नहीं जाने देंगे, टिकट मिले या ना मिले दावेदारी रहेगी और समीकरण बैठे तो किसी पार्टी की भी जरूरत नहीं होगी, हमारे लोग हमे जिताएंगे।
राजनीति विशेषज्ञ आशुतोष राय की मानें तो समय के साथ नगरीय निकाय चुनाव का पैटर्न बदल रहा है। अब जीत की गारंटी वाला फॉर्मूला नहीं चल रहा है। चुनाव जितना छोटा उतना संघर्षपूर्ण ऐसे में पार्टी से ज्यादा व्यक्तित्व मायने रखता है। अगर कोई लगातार किसी जगह से चुन कर रहा है इसका अर्थ यह नहीं कि इस बार भी वह जीते क्योंकि लोगों के पास सूचना तंत्र मजबूत हो चुका है। सूचनाएं अब किसी के नियंत्रण में नहीं है जो पहले थी। लोगों को विकास और दिशा अब पता चल रही हैं। जो अपने वार्ड के विकासपरक बाते करेगा वही लोगों का दिल और वोट जीतेगा। लोग सवाल करने लगे हैं कि इतने सालों से तो आप थे तब नहीं हुआ तो अब कैसे होगा।
पार्षदी और ठेकेदारी एक साथ
मठाधीशों की हनक की खनक दूर से सुनाई देती है। राशन दुकान का संचालन हो या फिर ठेकेदारी, कई जगह रंगदारी भी, कुछ तो प्रमाण पत्र के नाम पर जेब काटते हैं। रायगढ़ नगर निगम के ऐसे कई मठाधीश हैं जो पार्षदी के साथ-साथ ठेकेदारी भी करते हैं यानी अपने या आसपास के वार्ड का टेंडर लेते हैं नाली-सडक़ इत्यादि बना देते हैं क्वालिटी की बात बेमानी है। अब जब वे इतना व्यस्त रहेंगे तो पार्षदी और लोगों के लिए कहां से समय बचेगा। ऐसे पार्षदों से भी अब लोग तंग आ चुके हैं। खुलेआम भ्रष्टाचार और दादागिरी लोगों के हलक से नहीं उतर रही। इसी कारण इस बार के पार्षद चुनावों में बड़ा फेर बदल संभव है।
मठाधीश और नोटिस का खेल
कई बार यह देखा गया है कि पैसों और रूतबे के लिए मठाधीश खुद अपने ही वार्ड के लोगों को परेशान करते हैं। वह नोटिस- नोटिस खेलते हैं। वार्डवासी को अवैध निर्माण, सरकारी जमीन पर कब्जा, अवैधानिक निर्माण जैसे भारी भरकम शब्दों से लबरेज नोटिस किसी दूसरे के माध्यम से भेजवा देते हैं। पीडि़त वार्डवासी फलां दिवस के अंदर जवाब नहीं देने पर ढहाने और कानूनी कार्रवाई से डर जाता है और फिर पार्षद के माध्यम से ही मामले का पटाक्षेप करावाता है जिसमें दोनों ही ओर से उसका पार्षद मलाई खाता है। इस खेल को लोग अब समझ चुके हैं इस कारण लोग भी चाहते हैं कि कोई नया आए, पुराने से वह आजिज आ गए हैं।
मठाधीशों की टिकट कटना क्यों संभव
बीते कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि पढ़े लिखे समझदार युवा राजनिति में उतर रहे हैं। ये किसी राजनीतिक परिवार से नहीं बल्कि अपने बूते अपनी कहानी बना रहे। पार्टियों ने भी पूरे देश में युवाओं पर भरोसा दिखाया है। दिग्गजों की टिकट काटकर सेकंड लाइन को प्रमोट की है। पहले मठाधीशों को को चुनौती देने वाले नहीं थे पर अब समीकरण बदल चुके हैं। पार्टी टिकट दे या न दे अगर युवा ने ठान लिया है तो वह लड़ेगा, लोगों के लिए, खुद के लिए अपने वार्ड के विकास के लिए।
15 हजार मानदेय, लाखों की निधि बदलेगी पार्षद चुनाव की तस्वीर
