रायगढ़। नगर निगम में हर महीने लाखों की अवैध वसूली हो रही है। लोग अपनी पाई-पाई बचाकर घर बनाने की सोचते हैं, घर बनाना एक मील का पत्थर माना जाता है। पर लोगों की इन उम्मीदों पर सबसे पहला कुठाराघात नगर निगम करती है। भवन अनुज्ञा के नाम पर निगम आमजनों से 288 रूपये प्रति वर्ग मीटर, विकास शुल्क वसूल रही है। दरअसल विकास शुल्क कालोनाइजर निर्बंधन शर्तें नियम 2013 के नियम 12 5 एवं 15 6 के अनुसार लिये जाने का नियम है। यह कालोनाइजर के लिए लागू है तथा ऐसा क्षेत्र जो विकसित नहीं है उसका प्राक्कलन कर लगाये जाने के नियम हैं। रायगढ़ में तो हर उस व्यक्ति से यह विकास शुल्क (डेवलपमेंट चार्ज) लिया जा रहा है जो घर बनाने की अनुमति लेने आता है। अमूमन लोग नियमानुसार घर नहीं बनाते, कहने का अर्थ है कि प्लाट में चारो ओर करीब 45 फीसदी जमीन छोडऩे के बाद ही घर बनाये जाने का नियम है जिसका लोग पालन नहीं करते। निगम की ओर से कोई अडंगा नहीं लगे इस कारण वह भी इस अवैध वसूली का शिकार होते हैं। कई दफे कुछ ऐसे लोग भी आ जाते हैं जो टाउन प्लानिंग के हिसाब से घर बनाते हैं तो कुछ राशि की रियायत दे दी जाती है पर विकास शुल्क लिया जाता है। बताना लाजमी होगा कि जो निगम चार आना भी नहीं छोड़ती वह बड़ी रकम में कैसे और किस मद से छूट देती है।
निगम के सूत्र बताते हैं कि हर महीने करीब 100 भवन बनाने के आवेदन आते हैं जिसमें 1200 वर्ग फुट से लेकर 5000 वर्ग फुट तक के प्लाट होते हैं। मान लें 50 भवन 1200 से 3000 वर्ग फीट (औसत प्लाट का क्षेत्रफल 2700 वर्ग फीट यानी 250.81 वर्ग मीटर ) के आवेदन आते हैं तो यह यह 250.81 50 यानी 12,540 वर्ग मीटर होता है जिस पर 288 रूपये का विकास शुल्क लगने के बाद 36 लाख 11 हजार होता है। इसी तरह 50 घर 3000 से 5000 वर्ग फीट तक माने तो प्रति घर औसत 4000 वर्ग फीट यानी 371.5 वर्ग मीटर कुल 50 घर का 18,575 वर्ग मीटर जिस पर 288 रूपये का टैक्स मिलकर लगभग 53,49,600 रुपये हो जाता है। इस तरह से हर महीने निगम को अवैध डेवलपमेंट टैक्स से करीब 90 लाख रूपये की मोटी कमाई हो रही है। विदित हो कि इस प्रकार से आमजन से भवन निर्माण के लिए रायगढ़ निगम में ही विकास शुल्क लिया जाता है प्रदेश के अन्य नगरीय निकायों में ऐसा विकास शुल्क नहीं लिया जाता है। इसी तरह शिक्षा उपकर के नाम पर लोगों को नगर निगम लूट रही है। शिक्षा उपकर लेने का उद्देश्य निगम द्वारा संचालित स्कूलों के विकास में उस पैसे का इस्तेमाल करना। 1 मई 2016 से नगर निगम ने अपने सभी स्कूलों का संचालन शिक्षा विभाग को सौंप दिया है। अब जो शिक्षा उपकर आता है उसे निगम शिक्षा विभाग को दे देता है। जबकि शिक्षा विभाग के पास स्कूलों के संचालन के लिए अलग से बजट का प्रावधान सरकार और शासन करती है। तो फिर यह शिक्षा उपकर लोगों पर थोपा जाना कितना सही है। निगम अपने सभी करदाताओं के संपत्ति कर का 5 प्रतिशत शिक्षा उपकर के नाम पर ले रही है।
नगरीय प्रशासन मंत्री से हुई शिकायत
बीते दिनों सूबे के उपमुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव रायगढ़ के दौर पर थे तो उनसे कुछ लोगों का प्रतिनिधिमंडल मिला था और नगर निगम के इस विकास शुल्क को विलोपित करने बाबत आवेदन दिया। पत्र के माध्यम से उन्होंने बताया कि निगम किस आधार पर यह वसूली कर रही है वह भी नहीं बताया। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में भी निगम ने विकास शुल्क आरोपित करने के संबंध में दस्तावेज नहीं होना बताया।
विकास शुल्क के नाम पर सांप सूंघ गया
नगर निगम के लिए यह विकास शुल्क संजीवनी है जिसे वह किसी हाल में नहीं छोडऩा चाहती। इस मामले में शिकवा शिकायत तथा सफाई के लिये निगम के अधिकारी से लेकर विभागीय प्रभारी तक से बात करने की कोशिश की मगर इस मामले को लेकर किसी से भी माकूल जवाब नही मिल सका।