धरमजयगढ़। राज्य की सत्ता पर काबिज होने और आगे लोकसभा चुनाव के आशातीत परिणामों की कल्पना से ओतप्रोत पॉलिटिकल पार्टी में जश्न का माहौल है। इधर, अपने अमूल्य कहे जाने वाले वोट देने के बाद विकास की बाट जोहना मानो जनता की नियति बन गई है। तमाम सरकारी वादों के वावजूद यदि लोगों को मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराने में जिम्मेदार यदि कामयाब नही हो पाते हैं तो यह निहायत ही शर्मनाक है। ऐसा इसलिए कि जनप्रतिनिधि का काम नेतृत्व करने के साथ सही मार्ग प्रशस्त करना भी होता है। लेकिन जिले के धरमजयगढ़ से खरसिया मेन रोड की कहानी इसके बिलकुल उलट है। जहां रोड निर्माण कार्य की हालत को देखते हुए तमाम सरकारी नुमाइंदों, क्षेत्र के दिग्गज नेताओं ने अपने आने जानें का मार्ग ही बदल दिया।
इस मार्ग की दुर्दशा के कारण वैकल्पिक मार्ग का उपयोग करने के लिए स्थानीय जनता भी मजबूर हो गई है। चंद्रपुर, डभरा से होते हुए पत्थलगांव तक की सडक़ मार्ग निर्माण कार्य में शामिल खरसिया से धरमजयगढ़ रोड के नवीनीकरण एवं चौड़ीकरण के क्रियान्वयन का इतिहास विवादों से घिरा हुआ है। जिसमें भ्रष्टाचार, मनमानी, परेशानी जैसे मुद्दे शामिल हैं। इस सडक़ मार्ग निर्माण कार्य के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी श्रीजी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को मिली है।
परिर्वतन यात्रा के रथ फंसने से लेकर अब तक की कहानी
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक क्षेत्र अंतर्गत पूर्व में हुई बीजेपी की परिवर्तन यात्रा के दौरान एक वाकया हुआ जब रथ सडक़ पर फंस गई। तब भाजपा के कद्दावर नेता धरमलाल कौशिक ने धरमजयगढ़ विधायक को कोसते हुए कहा था कि ये कांग्रेस के लोग अपना विकास करना जानते हैं। क्षेत्र की समस्या से इन्हें कोई लेना देना नही होता जिसका उदाहरण आप सबके सामने है। आज प्रदेश में सडक़ भ्रष्टाचार के शिकार हो गया है। जिस कारण कांग्रेस के शासन काल में कांग्रेस के स्थानीय विधायक अपने घर के सामने का सडक़ नही बनवा पा रहे हैं। दुर्दशा ऐसी है कि इस सडक़ पर हम लोगों की गाड़ी फंस गई क्योंकि इतने बड़े बड़े गड्ढे सडक़ हैं। जो इन लोगों को नही दिख रहा है। धरमलाल कौशिक उस समय नेता प्रतिपक्ष थे। फि़लहाल राज्य में भाजपा की सरकार है और प्रोजेक्ट के शुरू होने से अब तक इस कार्य का विकास पूर्ववत प्रदूषण, दुर्गम पहुंच और ग्रामीणों की नाराजगी के बीच मंद गति से चल रहा है।
अप्रत्याशित रियायतों के बाद भी जमीनी हालात बदतर
इस पूरे मामले में कार्य एजेंसी को जिस तरह से विभागीय स्तर पर कई बार अप्रत्याशित रियायत देने और कथित तौर पर जनहित के नाम पर प्रशासनिक शिथिलता बरतने के पीछे के आधार के बारे में विस्तृत जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। पहले नगर क्षेत्र में सडक़ निर्माण कार्य के दौरान वैकल्पिक मार्ग के रूप में नगर पंचायत के गौरव पथ पर भारी वाहनों को लेकर जाने की छूट दी गई। बता दें कि तत्कालिक नगर पंचायत अधिकारी द्वारा इस मार्ग पर भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित किया गया था। आज भी उस गौरव पथ की बदतर स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। इसी मामले पर दूसरी राहत इस तरह मिली जिसमें प्रोजेक्ट अतिरिक्त वन भूमि के उपयोग किए जाने को लेकर विभाग से अपेक्षित स्वीकृति लिए जाने से जुड़ी जानकारी भी सवालों के घेरे में है। बतौर जानकारी विभाग ने केंद्रीय मंत्रालय के एक अधिसूचना की कापी उपलब्ध कराई है। जबकि संबंधित पत्र लीनियर प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में अतिरिक्त वन भूमि के उपयोग की किसी भी तरह की शर्तों को निर्धारित नहीं करता है। यह भी कि हाल ही में वन मंत्रालय ने ऐसी प्रियोजनाओं के लिए एक विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ दिशा निर्देश जारी किया है। जिसमें अतिरिक्त वन भूमि के अस्थायी उपयोग के नियम तय किए गए हैं।