बिलाईगढ़। वनांचल पर स्थित ग्राम झरनीडीह में सप्तदिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन श्रीराम श्रीमती चंद्रिका देवी साहू एवं उनके परिवार द्वारा विश्व कल्याण हेतु 13 मई से 19 मई तक आयोजित है। कथा का समय दोपहर 3 बजे से हरि इच्छा तक नियत है। सरायपाली छग से पहुची कथावाचिका सुश्री डॉ. प्रियंका त्रिपाठी व्यासासीन होकर अपनी सुमधुर शैली मे संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का रसा स्वादन करा रही हैं। कथा आयोजक श्रीराम साहू वरिष्ठ आंतरिक लेखा परीक्षण एवं करारोपण अधिकारी निवासी ग्राम झरनीडीह ने बताया कि – मई 13 सोमवार को कलश यात्रा प्रात: 9 बजे शुरू होगी। उसके बाद यथा समय श्रीमद्भागवत रूपी अमृत कथा का शुभारंभ होगा। 19 मई को सुदामा चरित्र, तुलसी वर्षा, पूर्णाहुति भंडारा के साथ कथा विश्राम लेगी।
कथावाचिका सुश्री डॉ. प्रियंका त्रिपाठी कथा सुनाती हुई बतायी कि – श्रीमद् भागवत स्वयं भगवान के मुख से नि:सृत कलिकाल का पंचम वेद है। यह व्यक्ति को शांति एवं समाज को क्रांति देने वाला एकमात्र शास्त्र है, जो मानव जीवन में विशुद्ध प्रेम की स्थापना करते हुए मृत्यु को भी मंगलमय कर देता है और जीव को काल के भय से मुक्त कर देता है। श्रीमद्भागवत आध्यात्मिक रस वितरण की सार्वजनिक प्याऊ है, जिसमें ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का अनूठा संगम है। परम सत्य की अनुभूति कराते हुए नर को नारायण पद प्राप्त कराने का उत्तम सोपान है श्रीमद्भागवत। तीनों प्रकार के तापों से मुक्ति का आश्रय है भागवत। जो तन के रोगों से पीडि़त हैं,मन के विकारों से ग्रसित है और धन के भय से आक्रांत है ऐसे जीवों के लिए भागवत साक्षात कल्पवृक्ष है।
भागवत की कथा धन, पुत्र, स्त्री, वाहनादि, यश, मकान और निष्कंटक राज्य भी दे सकती है, किंतु निष्काम प्रेमियों के लिए कलयुग में साक्षात श्रीकृष्ण की प्राप्ति कराने वाला व नित्य प्रेमानंद रूप फल प्रदान करने वाला है। यहां इसलिए माता कुंती भगवान श्री कृष्ण से भौतिक संपदा न मांग करके केवल विपत्तियों का ही वरदान मांगती है, क्योंकि विपत्ति में प्रत्येक क्षण प्रभु का स्मरण बना रहता है। ऐसे सुख लेकर क्या करें जो परमात्मा की विस्मृति करा दे। गोविंद को भूल जाना ही सबसे बड़ी विपत्ति है और कन्हैया की याद बनी रहे यही सबसे बड़ी संपत्ति है। हनुमानजी स्वयं कहते हैं – कह हनुमंत विपति प्रभु सोई। जब तब सुमिरन भजन न होई। ऐसे निष्काम भक्तों के लिए भगवान स्वयं घोषणा करते हैं – मैं स्वयं उन भक्तों के पीछे-पीछे सदा इसलिए फिरा करता हूं की उनके चरण रज से पवित्र हो जाऊं। कथावाचिका सुश्री डॉ प्रियंका त्रिपाठीजी ने आगे नारद एवं भक्ति देवी के संवाद, भागवत कथा श्रवण से भक्तिदेवी के दोनों पुत्र ज्ञान और वैराग्य के मूर्छा दूर होने की कथा, गौकर्ण एवं धुंधकारी के कथा को भी कह करके श्रोता समाज को सुनाई। कथा के बीच-बीच में संगीतमयी भजन गाकर श्रोताओं को नृत्य करने पर विवश कर दी।