इस वर्ष का अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस विगत कई वर्षो की तुलना मे कुछ अलग अनूठा सा रहा। यह समारोह स्त्री के सम्मान का समारोह है यह हम सभी जानते हैं लेकिन हमारे देश के मुखिया ने इसे जिस ढंग से आयोजित कर स्त्रियों का सम्मान किया वह बेशक अनुकरणीय है।अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन ही यह घोषणा कि कमजोर तबके के महिलाओं के परिवारों को गैस सिलेंडर मे सौ रुपयों की छूट,फिर नेशनल क्रियेटर का सम्मान समारोह और अंत मे महतारी वंदन योजना अर्थात हर जरूरतमंद महिलाओं के खाते मे एक हजार रुपयों को डालना।महज छत्तीसगढ़ मे ऐसी महिलाओं की संख्या तीन लाख से अधिक है।ऐसा ही कुछ शहर मे भी संम्पन्न हुआ जहां एक शैक्षणिक संस्था द्वारा हर वर्ग की महिलाओं का जिनमें शीर्ष पदों से लेकर स्वच्छता दीदी तक शामिल थी उन्हें सम्मानित किया गया।माहौल कुछ ऐसा था कि अनेक महिलाऐं भावुक हो गई थी। यह मोदी की हैट्रिक है और जहां तक मेरी जानकारी मे राजनीति मे ऐसी हैट्रिक कभी देखी नहीं गई।ऐसे सर्वोच्च सम्मान को नारी शक्ति कभी भूल नहीं सकती। यहां बात पैसो की नहीं उसके पीछे छिपी उस भावना और आदर का है जिसका कोई मोल नहीं होता।स्त्री होने के नाते यह बात स्त्रियों के लिए दावे के साथ कह सकती हूँ कि वह चाहे कितनी भी भुलक्कड़ हो पर सम्मान देने वाले को वह आजीवन नही भूलती।
सत्ता मे आने के बाद यही तो कर रहे हैं मोदीजी
स्त्री पक्ष को लेकर उनके जीवन स्तर को उठाने के हर संभव प्रयास जो कन्या शिशु के जन्म से लेकर उनकी शिक्षा से लेकर विवाह और उसके पश्चात उसके जीवन यापन से लेकर मृत्यु पर्यन्त अनेक कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई।सम्मान के साथ साथ आत्मनिर्भर बनाने हेतु नये प्रयासों द्वारा उन्हें प्रोत्साहित भी किया जा रहा है यह प्रशंसनीय है।महज इतना ही नहीं उनकी भागेदारी को भी सुनिश्चित किया जा रहा है।यहां मैथिली का उल्लेख करना जरूरी है।जिसे सरकार द्वारा सांस्कृतिक राजदूत मनोनीत किया गया है।भारतीय भाषाओं मे गायन के अलावा मुख्यत वह भोजपुरी और मैथिल लोकगीतों मे निष्णात है।टी.वी.चैनलों पर आयोजित गायन प्रतियोगिताओं मे उसने भाग भी लिया पर अंतिम चरण मे वह असफल हो गई( निर्णायकों पर एक प्रश्न चिन्ह भी है यह )बहरहाल उसकी किस्मत मे तो अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति लिखी थी शायद इसीलिए उसने बालीवुड की चमक दमक और ग्लैमर की दुनिया को छोड़ यू ट्यब पर अपने गीतों का सफर शुरू किया।यही से उसकी सफलता के रास्ते खुलते गऐ।हाल ही मे आकाशवाणी द्वारा मैथिली के गाये गए शास्त्रीय संगीत को 99वर्षों तक प्रसारित करने का एक अनुबंध भी किया है।महज 23 वर्षीय गायिका से आकाशवाणी द्वारा किया गया यह अनुबंध एक कीर्तिमान है।जब बालीवुड या भोजपुरी गाने फूहड़ता और अश्लीलता पर हो तब कजरी,छठ गीत और धार्मिक गीतो का युवाओं द्वारा गाया जाना एक सुखद एहसास है।फिर चाहे वह छपरा की स्वाति मिश्रा हो या ओडिशा की अभिलिप्सा पंडा।
चाहे धार्मिक गीत हो,लोकगीत या संगीत वे आम भारतीय जन मानस के हृदय को छूते ही हैं।आम भारतीय धर्मभीरु भी होते हैं जिसे आप उसकी आस्था भी कह सकते है।दशकों पहले से यह संस्कृति विलुप्त सी हो रही थी।जिसके पीछे युवाओं द्वारा पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण और मुम्बई की व्यवसायिक फिल्मों का अहम योगदान रहा।युवा पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक भटकाव के एक ऐसे मोड़ पर पहुँच गई थी जहां से वापस लौटना असंभव सा था लेकिन एक दशक में उनमें जो बदलाव देखा जा रहा है अपनी जड़ों की ओर लौटने का तो निस्संदेह उसके पीछे मोदी सरकार की सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियों की अहम भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।