रायगढ़। वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने यह छटवां बजट पेश किया है। बजट मुख्यता देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक समृद्धि का मूल आधार होता है। लेकिन कुछ वर्षो से इसका चरित्र ही बदल गया है।कुछ घोषणाओं और आकर्षक लुभावने श्लोगन की चकाचैंध तक सीमित हो गया है।
अर्थशास्त्र के सिद्धांत के विपरीत राजनैतिक महत्वाकांक्षा के सिद्धांत में बदल गया है।बहुत सी घोषणाएं जुमला सिद्ध हो जाती हैं कुछ घोषणाएं पर अमल ही नहीं होता है।कमोबेश उसी तरह इस बार का बजट भी देखने को मिला। ट्रेड यूनियन काउंसिल रायगढ़,छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष गणेश कछवाहा ने केंद्रीय बजट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त किया है। उनका कहना है कि चुनावी वर्ष होने की वजह से स्वाभाविक तौर पर यह बजट पूर्णत: चुनावी आकर्षणों में पूरी तरह संलिप्त है।
बजट में अर्थव्यवस्था की कोई उचित दिशा स्पष्ट नहीं है। गरीब और अमीर के बीच खाई और बढ़ेगी। सामाजिक विषमताएं बढ़ेगी। गरीबों के क्रय शक्ति को बढ़ाने और बाजार की हालत सुधारने हेतु कोई ठोस नीति नहीं है। बेरोजगारों और किसानों के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। कर्मचारियों या रोजगार शुदा लोगों के आर्थिक बचत हेतु आयकर में किसी प्रकार की रियायत या स्लैब में संशोधन नहीं किया गया है। शिक्षा ,चिकित्साऔर कृषि के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की योजना स्पष्ट नहीं है।
रेल्वे कारीडोर,वंदे मातरम् ट्रेन, एयर पोर्ट और एयर प्लेन विकास के मॉडल के रूप में पेश किया जा रहा है। जिसकी घोषणाएं पहले भी थे।बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी को लोगों ने भुला नहीं है। मुद्रा स्फीति पर कंट्रोल कैसे किया जाएगा इस पर बजट मौन है। विदेशी कर्ज का बोझ तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है उसे कम करने या अंकुश लगाने की कोई कारगार नीतियां नहीं है बल्कि विदेशी और अधिक बढऩे की संभावनाएं हैं। शिक्षा,चिकित्सा और कृषि बजट में कोई सकारात्मक वृद्धि नहीं है। बहुत सी सामाजिक कल्याण के बजट में कटौती कर नई घोषणाएं की गई हैं।रक्षा में विशेषकर सैनिकों और फौजियों की लंबित मांगों पर विचार नहीं किया गया है।यह भी देखना बहुत जरूरी है कि पिछले बजट में जो सामाजिक कल्याण अथवा इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रावधान या घोषणाएं किए गए थे उनमें कितने कैसे कहां साकार हुए या नहीं।
देश की 80 प्रतिशत परिसंपदा पर एक प्रतिशत पूंजीपतियों का कब्जा है और 99 प्रतिशत जनता जीवन को जीने या जीवन को बेहतर बनाने की जद्दोजहद में है।यह चिंता या सवाल हल होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। श्री कछवाहा ने कहा कि अब बजट अर्थशास्त्र के सिद्धांतो के अनुरूप न हो कर राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं के सिद्धांत पर तैयार की जाने लगी है।जिससे पार्टियों को राजनीतिक लाभ तो होगा परंतु देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास की आदर्श अवधारणा को बहुत नुकसान होगा।