रायगढ़। जिले में रिकार्ड मतदान को लेकर सियासी गलियारे में खलबली मची है। जिला मुख्यालय रायगढ़ सीट में जिले के तीनों विधानसभा सीट के मुकाबले मतदान का प्रतिशत भले ही कम है। लेकिन रायगढ़ सीट को लेकर बेहद दिलचस्पी लोगों में है। राजनीति के जानकारों की माने तो रायगढ़ सीट से पूर्व आईएएस ओपी चौधरी के चुनाव मैदान में आने के बाद से ही रायगढ़ हाई प्रोफाइल सीट बन गया था। भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी की मौजूदगी से विरोधी दलों में जिस तरह की खदबदाहट देखी गई। मतदान के दौरान सामने आए रुझान से विरोधी दल की बेचैनी बढ़ती जा रही। हालांकि सभी राजनीतिक दल चुनावी समीक्षा में जुटे हैं।
लेकिन जनता की चुप्पी का फिलहाल सही आकलन कर पाना मुश्किल लग रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस-भाजपा के कार्यकर्ता अपने-अपने दावे करते नजर आ रहे, जिससे लगता है कि जिले की रायगढ़ सहित सभी सीटों पर काफी करीबी मामला बन सकता है। राजनीति के जानकारों की माने तो मतदान के बाद रिजल्ट को लेकर जहां अलग-अलग राजनीतिक गलियारों में विश्लेषण शुरू हो गया है। लेकिन जनता के रुझान को किस रूप में लिया जाए यह तय नहीं हो पा रहा है। बताया जाता है कि रायगढ़ सीट सहित जिले की खरसिया, लैलूंगा और धरमजयगढ़ सीट में इस बार मतदान के आंकड़े कुछ अलग ही तस्वीर बनता नजर आ रहा है। जिस राजनीतिक विश्लेषक भी मतदान के इस प्रतिशत से मतदाताओं का मूड समझ पाने में मुश्किल नजर आ रहा है।
जिला मुख्यालय के रायगढ़ सीट की बात की जाए तो 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-भाजपा को मिले वोट की तुलनात्मक समीक्षा शुरू हो गई। बताया जाता है कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को करीब 69 हजार वोट मिले थे, जबकि भाजपा के हिस्से में करीब साढे 54 हजार आई थी। साथ ही निर्दलीय के तौर पर विजय अग्रवाल ने करीब 4३ हजार वोट हासिल किया था। इस बार रायगढ़ सीट के लिए 2 लाख 2 हजार 742 वोट डाला गया। अब इस वोट को दोनों बड़े राजनीतिक दलों के अलावा अन्य प्रत्याशियों में बांटकर रिजल्ट के कयास लगाये जा रहे हैं। लेकिन मुकाबला बेहद कांटे के होने से राजनीतिक विश्लेषक सही अनुमान लगाने में फिलहाल असमर्थ नजर आ रहे हैं। बताया जाता है कि इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग रहा। जिसमें दोनों बड़े राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र प्रत्याशियों का फेस और सरकारों के काम-काज जैसे अलग-अलग मुद्दे रहे। इस स्थिति में मतदान के रुझान को सही आकलन करने के लिए बेहद गहराई तक फीडबैक लेने की जरूरत बताई जा रही है। बताया जाता है कि आने वाले दिनों में मतदान को लेकर जनता से मिले फीडबैक से अनुमान मिल पाने की संभावना बन सकती है। यह स्थिति रायगढ़ सहित खरसिया, धरमजयगढ़ और लैलूंगा सीट को लेकर बनी हुई है।
ग्रामीण क्षेत्र में अंडरकरंट के क्या है मायने?
शहरी क्षेत्र में मतदान के बाद जिस तरह से मतदाता मुखर हैं। उस तरह की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं दिख रही है। जिससे रायगढ़ जिले की खरसिया, धरमजाएगा और लैलूंगा सीट को लेकर करीबी अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल लगता है। बताया जाता है कि रायगढ़ जिला मुख्यालय में बने चुनावी माहौल की बयार ग्रामीण क्षेत्रों में भी बहती नजर आई। मतदान के बाद ग्रामीण मतदाताओं की चुप्पी अंडरकरंट की कहानी बयां करते महसूस होते हैं। खरसिया, धरमजयगढ़ और लैलूंगा सीट में मुकाबला कांटे के होने के अनुमान है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी चर्चा होने लगी है कि परिणाम नई तस्वीर बना सकते हैं। बताया जाता है कि यदि ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की अंतिम इंनकमबेसी यदि हावी रही होगी तो इसका परिणाम पर भी असर साफ तौर पर पड़ सकता है। यदि ऐसा होता है तो जिले में एक नई सियासी तस्वीर बन सकती है, हालांकि अनुमान सच्चाई के कितने करीब हैं, कुछ नहीं कहा जा सकता।
रायगढ़ में रुझान से बढ़त के संकेत!
रायगढ़ शहरी क्षेत्र में मतदान के बाद जिस तरह के रुझान आ रहे हैं। उसे लगता है कि मतदाताओं ने पूरी तरह से मुखर होकर मतदान किया। यह मुखरता भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी को रायगढ़ शहर में लीड देने के संकेत है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की बात करें मसलन सरिया, पुसौर और लोईंग-महापल्ली पूर्वांचल की तो ग्रामीण मतदाता अपनी चुप्पी नहीं तोड़ रहे हैं। लेकिन ओपी चौधरी के बढ़त की संभावना से इनकार भी नहीं कर रहे हैं। जिसमें राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा सरगर्म होती जा रही है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में ओपी चौधरी को लेकर जिस तरह रुझान है, यदि वह वोट में तब्दील हुए तो परिणाम बेहद चौंकाने वाले आ सकते हैं। यह भी बताया जाता है कि 2018 की तरह किसी निर्दलीय के कमाल करने के रुझान नहीं होने से मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच है। जिससे वोटों की एक छोटे से हिस्से को निर्दलीयों के लिए अलग कर भाजपा-कांग्रेस के खाते में बेहद बड़ा हिस्सा जाने के संकेत साफ है। इस बड़े हिस्से में किसकी बढ़त बनेगी इस पर अनुमान लगाने की अटकलें हैं।