रायगढ़। जिला मुख्यालय की सामान्य सीट पर पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को प्रत्याशी घोषित करने के बाद चुनाव संचालन की कमान ऐसे व्यक्ति के हाथों सौपना चाहती थी, जिसका राजनीतिक पृष्ठभूमि और अनुभव का लाभ प्रत्याशी को मिले। और अंतत: भाजपा ने रायगढ़ की इस हाई प्रोफाइल सीट के चुनाव संचालन का दायित्व पूर्व विधायक विजय अग्रवाल को सौंप दी। रायगढ़ सीट का चुनाव संचालक घोषित होने के साथ राजनीति के जानकार भाजपा की इसे कुशल रणनीति का हिस्सा बता रहे हैं। जानकारों की माने तो भाजपा प्रत्याशी आप चौधरी के सारथी बने विजय अग्रवाल की राजनीतिक दूरदर्शिता, वेल मैनेजमेंट का बेहतर लाभ पार्टी को मिल सकता है। पूर्व विधायक विजय अग्रवाल भाजपा के बेहद सुलझे हुए नेता माने जाते हैं।
उन्होंने अपने छात्र जीवन में वर्ष 1980 के दौरान भाजपा से जुडक़र अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। संगठन में मजबूत पकड़ बनाने में कामयाब रहे विजय अग्रवाल को 5 साल के भीतर ही पार्टी ने वर्ष 1985 में रायगढ़ जिले का भाजपा के जिला अध्यक्ष की कमान सौंप दी। यह ऐसा दौर था जब भाजपा की राजनीति में जुड़े लोगों की संख्या उंगलियों में गिनी जा सकती थी, लेकिन जीवट स्वभाव के चलते विजय अग्रवाल भाजयुमो के संगठन को मजबूत बनाने में सफल रहे। कार्यकर्ताओं की बढ़ती संख्या और संगठन की मजबूत होती पकड़ से विजय अग्रवाल को भाजपा ने वर्ष 1993 के विधानसभा में पार्टी का प्रत्याशी बना दिया। यह वो दौर था जब रायगढ़ सीट पर कांग्रेस का लगातार कब्जा रहा। पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे विजय अग्रवाल को सफलता तो नहीं मिली। लेकिन भाजपा में कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज जरूर मिल गई। उसे दौर में विजय अग्रवाल और रोशन अग्रवाल की जोड़ी पार्टी में बेहद हिट रही। ‘जय-वीरू’ का संबोधन उन्हीं के लिए पार्टी में शुरू हो गया। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भाजपा ने एक बार विजय अग्रवाल को रायगढ़ सीट से प्रत्याशी बनाया और इस बार कांग्रेस के तत्कालीन मंत्री केके गुप्ता को पराजित कर विजय अग्रवाल ने भाजपा का ध्वज फहरा दिया। कांग्रेस को मिली पराजय के बाद भाजपा में कार्यकर्ताओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी भी रायगढ़ विधायक विजय अग्रवाल के कार्यकाल में दर्ज हुई। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में विजय अग्रवाल पूना प्रत्याशी घोषित हुए, लेकिन सरिया विधानसभा सीट के परिसीमन के चलते कांग्रेस के सक्राजित नायक से वह रायगढ़ सीट गंवा बैठे। बताया जाता है कि रायगढ़ के पुसौर इलाके में अपनी मजबूत पकड़ बनाने में विजय अग्रवाल बेहद सफल नेता साबित हुए, और यही वजह है कि उन्होंने वर्ष 2013 में एक बार फिर पार्टी से रायगढ़ सीट पर अपनी मजबूत दावेदारी पेश की।
हालांकि 2013 के चुनाव में पार्टी ने उनके ही साथ रहे रोशन लाल अग्रवाल को प्रत्याशी बना दिया। राजनीति के जानकारों की माने तो संगठन की मजबूती का लाभ भाजपा प्रत्याशी रोशन लाल अग्रवाल को मिला और उन्होंने कांग्रेस से यह सीट छीन ली। भाजपा के बढ़ते जनाधार का श्रेय विजय अग्रवाल, रोशन अग्रवाल सहित उसे दौर के पूरी टीम को दिया जाता रहा है। वर्ष 2018 का चुनाव में अपने समर्थकों के बढ़ते दबाव के चलते विजय अग्रवाल ने इस बार भी उन्हें पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लडऩे का खतरा मोल लिया। जिसका यह परिणाम हुआ कि वर्ष 2018 का चुनाव में निर्दलीय विजय अग्रवाल और भाजपा प्रत्याशी रोशन लाल अग्रवाल के सामने कांग्रेस के प्रकाश शक्राजीत नायक ने त्रिकोणीय मुकाबले में चुनाव जीत लिया।
भाजपा की इस पराजय पर पार्टी ने विजय अग्रवाल पर निष्कासन की कार्रवाई की। उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। हालांकि भाजपाई पृष्ठभूमि के विजय अग्रवाल ने कभी भी पार्टी के खिलाफ बयान बाजी नहीं की, जिसका सुखद परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव से करीब साल भर पहले ही पार्टी ने उनका निष्कासन बहाल कर दिया। बताया जाता है कि भाजपा में उनकी वापसी को लेकर जिला स्तर के पदाधिकारी ने अनेक प्रयास किये, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी। अंतत: प्रदेश स्तर पर बगावत करने वाले नेताओं की पार्टी में वापसी की प्रक्रिया शुरू हुई तो भाजपा प्रदेश महामंत्री ओपी चौधरी सहित जिले के अन्य नेताओं की सार्थक पहल काम आई और विजय अग्रवाल की भाजपा में वापसी हुई। करीब 43 वर्ष के राजनीतिक जीवन की लंबी अवधि में पूरा विधायक विजय अग्रवाल की निष्ठा हमेशा भाजपा के प्रति रही है। और यही वजह है कि पार्टी ने एक अनुभवी, दूरदर्शी और रायगढ़ विधानसभा सीट पर मजबूत पकड़ रखने वाले पूर्व विधायक विजय अग्रवाल को इस चुनाव में चुनाव संचालक का दायित्व सौंपा है। माना जा रहा है कि भाजपा प्रत्याशी के लिए यह बेहद शुभ संकेत है कि उन्हें चुनाव का बेहतर अनुभव रखने वाले व्यक्ति का नेतृत्व चुनावी रणनीति को साधने में सफलता प्रदान करेगी।