रायगढ़। किन्नर समुदाय की डंकीन ठंप उस वक्त प्रदेश ही नहीं देश की पटल पर उभर कर चर्चा में सामने आई जब रायगढ़ नगर निगम मेयर चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में 33 हजार से अधिक मत प्राप्त कर विजई बनी थी और अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के महावीर गुरुजी 4537 मतों से करारी शिकस्त दी थी। के नतीजे ने सभी को चौंका दिया था। चुनाव परिणाम ऐसा कि मानो मतदाताओं ने जनादेश देकर सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के गाल पर करारा थप्पड़ जड़ दिया था। रायगढ़ जिले में अभी आगामी विधानसभा चुनाव में मधु भाई ने (जे) से अपना नामांकन फार्म खरीदा है।
कांग्रेस और बीजेपी से ठगे हुए मतदाताओ ने तीसरे विकल्प के रूप में पूर्व में महापौर चुनाव के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों आइना चुके हैं। वर्तमान में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टी में बगावत भी स्पष्ट दिख रहे हैं। दोनों ही पार्टी में टिकट वितरण से नाराज उम्मीदवार अब विभीषण बन चुके हैं। कांग्रेसी नेता शंकर लाल अग्रवाल पार्टी छोड़ निर्दलीय मैदान में उतरने का मन बना चुके हैं वही बीजेपी के उम्मीदवार ओपी चौधरी के विरोध में भाजपा की ही नेत्री गोपिका गुप्ता ने भी पार्टी के आला कमान को 30 अक्तूबर तक प्रत्याशी बदलने का अल्टीमेटम दिया है तथा बीजेपी प्रत्याशी ओपी चौधरी को न बदलने की स्थिति में निर्दलीय मैदान पर उतरने ऐलान किया है।
दो के बीच में तीसरे को फायदा
यह कहावत भी आपने सुनी ही होगी। लगता है इस बार रायगढ़ विधानसभा चुनाव में भी कुछ ऐसे ही होने के कयास लगाए जा रहे।बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों में बगावत मुखर होने लगी है । टिकट की मांग कर रहे नाराज कांग्रेसी नेता अपनी ही पार्टी के खिलाफ नजर आ रहे हैं वही बीजेपी में पुसौर क्षेत्र की चर्चित बीजेपी नेत्री गोपिका गुप्ता ने भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी को बदलने पर अड़ी हुई हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टी के ही नाराज नेता अपनी अपनी की राहों में गड्ढे खोद रहे हैं। हालाकि डैमेज कंट्रोल करने के लिए दोनों ही पार्टी के जिला पदाधिकारी और आला कमान अपने-अपने कार्यकर्ताओं को मनाने में जुटे हैं लेकिन अभी तक उन्हें मनाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। कुल मिलाकर यहां राजनीतिक गर्मी पूरे उन्माद पर है। ऐसे में पूर्व महापौर मधुबाई का जोगी कांग्रेस से चुनाव मैदान में उतरना बेहद दिलचस्प नजर आ रहा है। प्रदेश में सबसे हॉट हो चुके रायगढ़ सीट और दिनों दिन दिलचस्प होता चुनावी समीकरण आगे क्या रंग बदलेगा? किसे जनादेश मिलेगा और किसके सर पर सजेगा जीत का सेहरा यह तो भविष्य के गर्भ में है।