सारंगढ़। भगवान के दर्शन के लिए राजस्थान के 72 वर्षीय भंवर लाल जैसे जो राजस्थान के राजसमंद जिले के बिनोल गांव से 8 फरवरी को महाप्रभु जगन्नाथ जी के दर्शन हेतु पैदल ही निकल पड़े है। ऐसा नही कि यह पहली दफे पैदल यात्रा में निकले हो। इससे पहले भी वें 3 धामों की पदयात्रा कर चुके हैं, सबसे पहले इन्होने
बद्रीनाथ , केदारनाथ धाम हेतु पदयात्रा 11 मार्च 2008 से की 1140 किलोमीटर का सफर 12 अप्रेल को पुरा किया। इसके बाद रामेश्वरम दूसरी पदयात्रा 5 फरवरी 2023 से 29 मई तक करीब 2500 किमी की दूरी तय की। द्वारकाधीश के लिए 16 सितम्बर 2024 से 21 अक्टुबर तक 850 किमी का सफर पैदल चल पुरा कियें।
72 साल के भंवर लाल की चुस्ती फुर्ती आज भी देखते ही बनती है। उम्र के इस पड़ाव में भी किसी जवान से कम नजर नही आते है। चाल ऐसी कि – अच्छे लोग भी इनके पीछे रह जाएं। ये प्रति दिन 30 से 35 किमी का पैदल सफर आसानी से पुरा कर लेते है। इनकी इच्छा है की जितना हो सके पैदल चलकर भारत का भ्रमण कर संकू ये अभी तक उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, मप्र, छग, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात के पैदल यात्रा कर चुके है अब उडि़सा पैदल जा रहे हैं। भंवरलाल गुर्जर पत्रकार से चर्चा पर बताते है कि मेरी कोई औकात नही की पैदल चल कर चारों धाम का दर्शन कर संकू। यह तो परमात्मा की कृपा है , प्रभु का नाम लेकर हमेशा आगे बढ़ता रहता हूं।जहां मंदिर नजर आता है वहीं रात्रि में विश्राम कर फिर सुबह यात्रा शुरू कर लेता हूं।
जैन मुनी आचार्य तुलसी से मिले पैदल यात्रा की प्रेरणा
भंवर लाल बताते हैं कि- उन्हे पैदल चलने की प्रेरणा गांव पर सत्संग पर आये आचार्य तुलसी से मिली। प्रवचन के दौरान मन में विचार आया की जैन मुनी पैदल चलकर भारत भ्रमण कर सकते है तो मैं क्यों अपनी चारो धाम की यात्रा व भारत भम्रण पैदल नही कर सकता तब से पैदल यात्रा की शुरूवात की, जो अनवरत जारी है। जब तक सांस और शरीर में जान है यह यात्रा जारी रहेगी, संसार व स्वंय को पहचानना यात्रा का मुख्य उद्देश्य भंवर लाल का कहना कि – मानव जीवन में पृथ्वी लोक की यात्रा करने एवं इस संसार में स्वयं को जानना है। इस संसार में हम खुद को ही नहीं पहचान पा रहे।मानव जीवन मोक्ष का द्वार है कई लाख योनियों में भटकने के बाद यह जीवन मिलता है।
अपने परम पिता परमेश्वर को भूलकर हम खोकर रह गए हैं। मानव जीवन में कोई कितना भी ज्ञानी क्यों न हो अगर राम नाम का जाप नहीं तो वह महाअज्ञानी है। इस जन्म में तो क्या वह किसी जन्म में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। संसार में स्वयं को पहचानना ही मोक्ष है,कोविड में बड़े बेटे का जाना दुख भरा पल था। भंवरलाल बताते र्है कि – कोविड 19 ने 44 वर्षीय इनके बड़े बेटे को इनसे छिन लिया उनको निमोनिया हुआ और कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई। यह समय जीवन में सबसे बड़ा दु:ख का पल था। भगवान की मर्जी के सामने किसी की नही चलती है। जिसका जीवन जीतना होता है उतना ही इंसान जीता है। मौत तो एक बहाना होता है जो अटल सत्य है।
भंवरलाल के परिवार में दस सदस्य हैं जिनका भंवरलाल को यात्रा के लिए पूरी तरह समर्थन मिलता है। स्वर्गीय बेटे का बेटा एल्यूमिनियम कंपनी में कार्यरत हैं वहीं उनके दूसरे बेटे राजस्थान के गांव में 20 बीघा वैसे 12.5 एकड़ खेती को संभालते हैं। प्रतिदिन घर में मोबाइल फोन के माध्यम से बात होती रहती है इसीलिए परिवार यात्रा को लेकर चिंतामुक्त हैं। दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो उम्र कोई मायने नही रखती है जो भंवर लाल में नजर आता है। उम्र 72 वर्ष के होने के बाद भी जवान आदमी से कम नजर नही आते है। पैदल यात्रा से इन का शरीर इस उम्र में एक दम फीट है। यात्रा के दौरान आज तक न तो दवाई और न इंजेक्शन की जरूरत पड़ी, न ही थकान महसूस हूई। शुद्ध शाकाहारी होना इनका तंदुरुस्ती का बड़ा राज है। ये घर पर शौक से दाल, बाटी, चूरमा,घी, दही,मक्के की रोटी भोजन में लेते है।
भगवान जगन्नाथ के दर्शन हेतु राजस्थान से पैदल निकले 72 वर्षीय भंवरलाल
