ओपी के विधायक बनने के बाद राजनीति में बहुत से रिकॉर्ड ऐसे बन रहे है जो शायद कभी ना टूट पाए..ओपी को जितने वोटो से जीत मिली…उतने वोट कांग्रेस के विधायक प्रत्याशी प्रकाश नायक को नहीं मिले…छग गठन के बाद रायगढ़ विधान सभा में भाजपा कांग्रेस दोनो दलों से विधायक बने लेकिन एक साल बाद हुए निगम चुनाव में दोनों पार्टी से जुड़े विधायक अपनी पार्टी के महापौर को नहीं जीता पाए और ये विषयक खुद भी अपना अगला चुनाव हार गए..पहला विधान सभा चुनाव 2003 में हुआ..कांग्रेस विधायक एवं स्वास्थ्य मंत्री के के गुप्ता को भाजपा के विजय अग्रवाल ने परास्त किया लेकिन एक साल बाद हुए निगम चुनाव में कांग्रेस से जेठू राम महापौर बने..2008 के दौरान अगला चुनाव भाजपा विधायक विजय अग्रवाल हार गए और स्वर्गीय डॉक्टर शक्राजीत नायक कांग्रेस के विधायक बने लेकिन वे भी एक साल बाद हुए निगम चुनाव में अपने पार्टी के महापौर को नहीं जीता पाए और भाजपा के महेंद्र चौहथा महापौर बने 2013 में हुए अगले चुनाव में कांग्रेस विधायक स्वर्गीय नायक हार गए और भाजपा से स्वर्गीय रोशन लाल विधायक बने लेकिन वे भी अपनी पार्टी के महापौर प्रत्याशी महावीर गुरुजी को नहीं जीता पाए बल्कि निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही मधु बाई ने मटका चुनाव चिन्ह में चुनाव जीता..अगला चुनाव 2018 में हुआ जिसमें भाजपा विधायक स्वर्गीय रोशन लाल हार गए और विधायक प्रकाश नायक बने एक साल बाद हुए निगम चुनाव में महापौर पद के लिए वोटिंग नहीं हुई
बल्कि पार्षदों के वोट से जानकी काटजू महापौर बनी..2023 में हुए अगला चुनाव प्रकाश नायक हार गए और भाजपा से विधायक बने ओपी चौधरी ..विधायक बनने के साथ ही ओपी ने विधान सभा में विकास के ऐसे चौके छक्के लगाए कि बतौर विपक्ष फील्डिंग करते हुए कांग्रेसियों के हौसले पस्त हो गए…एक साल बाद हुए निगम चुनाव में ओपी ने महापौर प्रत्याशी हेतु चाय वाले जीवर्धन पर अपनी मुहर लगाई तो कांग्रेस बिना चुनाव लड़े ही हारी हुई नजर आने लगी और विकास की राजनीति के साथ ओपी के धुंआधार प्रचार का यह असर हुआ कि जितने वोट से जीवर्धन जीते उतने वोट कांग्रेस की महापौर रही जानकी काटजू को नहीं मिल पाए…चुनाव प्रचार के दौरान ओपी ने आम जनता से मार्मिक अपील करते हुए कहा कि कांग्रेस को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करे…कांग्रेस का अभेद गढ़ रहे खरसिया की तीन सीट कांग्रेस के कब्जे में थी लेकिन यहां से कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई और शून्य में आ गई वही खरसिया नगर पंचायत अध्यक्ष का पद भी कांग्रेस हार गई। पुसौर में तीन जिला पंचायत की सीट में दो कांग्रेस के कब्जे में थी लेकिन इस बार कांग्रेस अपने कब्जे वाली दोनों सीट हार गई इस तरह पहली बार पुसौर और खरसिया जिला पंचायत अब कांग्रेस मुक्त हो गया..पिछले बार 13 सीटों में 2 भाजपा के पास थी और 11 सीटे कांग्रेस के पास थी लेकिन ओपी के विकास की राजनीति का यह जादुई असर रहा कि कुल 13 सीटों में 11 भाजपा के कब्जे में रही और कांग्रेस 11 सीटों से घटकर 2 सोटो में आ गई वही धर्म जय गढ़ और लैलूंगा में नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी हार गई। ओपी द्वारा लगाए गए विकास की राजनीति के नारे का तोड़ खोज पाने में कांग्रेस असफल रही।