रायगढ़। जिला पंचायत में भाजपा समर्थित सदस्यों की संख्या 16 होने के साथ ही भाजपा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के संभावित दावेदारों को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। सबसे ज्यादा अध्यक्ष पद को लेकर गहमा-गहमी है। रायगढ़ में अध्यक्ष पद महिला वर्ग अनारक्षित है, जिससे चुनाव जीतने वाली ज्यादातर महिला सदस्य स्वयं को प्रबल दावेदार मान रहीं हैं। हालांकि अब तक अध्यक्ष पद के लिए किसी ने दावेदारी नहीं की है, जिससे माना जा रहा है कि अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी बेहद गंभीर है और भाजपा ऐसी महिला के हाथों में नेतृत्व सौंप कर एक तीर से कई निशाना साधना चाहती है।
इस नजरिए से क्षेत्रवार गौर किया जाए तो खरसिया विधानसभा क्षेत्र बेहद खास हो जाता है। इस क्षेत्र के खरसिया विकासखंड में भाजपा ने जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों को खाता खोलने का मौका नहीं दिया। क्षेत्र की सभी तीन सीटों पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हो गए। जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 7 से शिखा रविन्द्र गबेल, क्षेत्र क्रमांक 8 से बलदेव कुर्रे और क्षेत्र क्रमांक 9 से सतबाई पटेल ने शानदार जीत दर्ज की। इनमें शिखा रविन्द्र गबेल के नाम की चर्चा सबसे अधिक है। बताया जाता है कि रविन्द्र प्रकाश गबेल खरसिया क्षेत्र में बेहद प्रतिष्ठित नाम है। युवाओं में इनकी तगड़ी पैठ है, लंबे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद भी ओपी चौधरी से खासे प्रभावित रहे। और ओपी चौधरी के राजनीति में पदार्पण के साथ ही रविन्द्र प्रकाश गबेल ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया। साथ ही ओपी चौधरी के नेतृत्व में भाजपा की सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए।
क्षेत्र विकास के लिए राजनीतिक संतुलन बन सकता है आधार
राजनीति में जातीय समीकरण का अपना महत्व है, भाजपा भी इससे अछूता नहीं है। रायगढ़ जिले में भाजपा की मौजूदा राजनीतिक हालात पर गौर करें तो, भाजपा सभी वर्गों में अपनी पैठ बनाने में कामयाब नजर आती है। राजनीति के जानकारों की मानें तो जिले की चारों विधानसभा क्षेत्र में भाजपा एक सबल नेतृत्व देने की तैयारी में है। रायगढ़ विधानसभा चुनाव में ओपी चौधरी की ऐतिहासिक जीत इस बात का प्रमाण है कि आम जनता भी इस पर मुहर लगा चुकी है। उधर धरमजयगढ़ क्षेत्र से भाजपा ने लोकसभा सांसद राधेश्याम राठिया को संसदीय क्षेत्र का नेतृत्व सौंपा। साथ ही लैलूंगा विधानसभा क्षेत्र से राज्यसभा सांसद देवेन्द्र सिंह निर्वाचित कर भाजपा ने राजनीतिक संतुलन का संदेश दिया है। इस लिहाज से जातीय समीकरण के साथ राजनीतिक संतुलन बना कर विकास की राजनीति का आधार बनाना खरसिया विधानसभा क्षेत्र के हिस्से में है। अब देखना है कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चयन में भाजपा कौन सी रणनीति अख्तियार करती है।
सुषमा के निर्विरोध निर्वाचन का मतलब
जिला पंचायत चुनाव में इस बार निर्विरोध निर्वाचन का रिकार्ड भी कायम हुआ। इस चुनाव में भाजपा की सुषमा खलखो ने जिला पंचायत के क्षेत्र क्रमांक 1 से निर्विरोध निर्वाचित होकर पार्टी की मजबूत स्थिति का अहसास करा दिया। दूसरी तरफ त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा को अपने पक्ष में एक माहौल तैयार करने में बड़ी सफलता मिली। जिला पंचायत अध्यक्ष के दावेदार के तौर पर सुषमा खलखो के नाम की भी खासी चर्चा है, भाजपा अनुसूचित जनजाति वर्ग की महिला को क्या यह दायित्व सौंप सकती है? यह सवाल भी उठ रहा है। चूंकि अनुसूचित जनजाति वर्ग के अलावा ओबीसी वर्ग से भी महिलाएं जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुईं हैं। महिला सदस्यों में संख्या बल के लिहाज से भी ओबीसी वर्ग का पलड़ा भारी है। सुषमा खलखो के निर्विरोध निर्वाचन को किस रूप में लिया जाता है ,यह पार्टी तय करेगी। हालांकि सुषमा खलखो एक निष्ठावान और जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर जानी जाती हैं, और इसका ईनाम मिलना बाकी है।
भाजपा के लिए गोल्डन चांस!
भाजपा खरसिया विधानसभा सीट को लेकर बेहद गंभीर है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बेहतर जमीन तैयार करना चाहती है, जिससे आने वाले विधानसभा चुनाव में खरसिया सीट अपने नाम कर सके। ऐसी स्थिति में भाजपा इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष पद की कमान शिखा रविन्द्र गबेल के हाथों में सौंप सकती है। भाजपा, जिला पंचायत अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी का जनाधार बढ़ा कर कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती खड़ा करने की स्थिति में आ सकती है, और भाजपा को इसका बड़ा लाभ होता दिख भी रहा है। जिस तरह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस को खरसिया विधानसभा क्षेत्र में करारा झटका लगा है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि बाकी कसर अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा निकाल लेगी। जिला पंचायत अध्यक्ष के चयन के लिए भाजपा क्या रणनीति बनाएगी? उसे लेकर दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह भी तय है कि भाजपा ऐसे गोल्डन चांस को हाथ से जाने नहीं देना चाहेगी।