रायगढ़। भगवान जगन्नाथ मंदिर में देवस्नान पूजा के पश्चात इन दिनों महाप्रभु को श्रद्धा से दी जा रही पंचकर्म चिकित्सा इसके पश्चात आगामी छह जुलाई को नेत्रोत्सव पूजा होगी। वहीं इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए उत्कल सांस्कृतिक सेवा समिति के अध्यक्ष देवेश षडंगी ने बताया कि स्नान पूर्णिमा से लेकर आषाढ अमावस्या तक भगवान श्रीजगन्नाथ अस्वस्थ होकर ‘अनवसर गृह’ में रहते हैं । इन दिनों में तीनों देवताओं श्रीबलभद्र, देवी शुभद्रा एवं महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी को पंचकर्म चिकित्सा दी जाती है। यह सेवा दिन में दो बार दी जाती है ,जिसमें पंचमी के दिन फूलारी लगाते हैं । यह फूलारी तेल शरीर के ताप को कम करने के लिए दी जाती है । इसे सूवार जाती के लोग ही बनाते हैं । यह तेल लगभग 4 किलो का बनता है ,जिसमें शुद्ध तील तेल मुख्य रहता है एवं खस की जड़,विभिन्न सुगंधित फूल जैसे जूही,जय, मोगरा, का उपयोग किया जाता है। ये सभी पदार्थ तेल सहित एक मिट्टी के पात्र में सील बंद कर जमीन के अंदर हेरा पंचमी से एक वर्ष तक रखते हैं। उन्होंने बताया कि एक वर्ष पश्चात इससे तेल निकाल कर इसे मंदिर को भेजा जाता है ,जहां इसे देवताओ को लगाया जाता है । इस ओसुवा नीति से बुखार उतर जाता है। इसके पश्चात सूवार लोगों द्वारा एक विशेष भोग बनाया जाता है जो कि गेंहूं का आटा ,कर्पूर, एवं चंदन का बनता है जिसे शालिसास्थिका पिंडा स्वेदाना कहते हैं ,देवताओ को अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात वैद्य द्वारा एक विशेष आयुर्वेदिक औषधी दसमूला तैयार की जाती है, जिसमें कई जड़ी बूटीयां होते हैं, इन जड़ी बूटियों के छाल और जड़ को काटकर, कूटकर, पीसकर, इसमें शहद, घी, और कर्पूर मिलाकर, गर्म कर छोटी छोटी गोलियां बनाई जाती है ,जिसे देवताओ को दिया जाता है। वहीं आषाढ शुक्लपक्ष प्रतिपदा को भगवान श्रीजगन्नाथ,बलभद्र देव एवं देवी सुभद्रा स्वास्थ्य लाभ कर अपने नेत्र खोलते हैं । इस दिन मंदिर में नेत्रोत्सव मनाया जाता है और भगवान को नई काजल लगाकर श्रृंगार किया जाता है, इसे नवयौवन दर्शन कहा जाता है एवं अगले दिन से भगवान रथारुढ होकर नगर भ्रमण कर अपनी मौशी माता गुंडिचा के घर जाने निकलते हैं।
6 जुलाई को खुलेगा पट
वहीं 15 दिनों के पश्चात अर्थात 6 जुलाई को भगवान के नेत्र खुलने पर मंदिर के कपाट खुलेंगे एवं इस दिन नेत्रोत्सव होगा जिसमें भगवान के नवयौवन रूप का दर्शन होगा । तत्पश्चात 7 जुलाई आषाढ शुक्लपक्ष द्वितीया को रथ यात्रा का शुभारंभ होगा। रायगढ की परंपरानुसार यहां के दो दिवसीय रथ यात्रा में 7 जुलाई को नीति अनुसार रायगढ राजपरिवार द्वारा पहंडी एवं छेरा पहरा का कार्यक्रम होगा एवं भगवान श्री जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा जी के साथ रथारुढ होंगे। इस दिन भगवान का रथ श्री समलेश्वरी मंदिर के सामनें के मैदान पर ही रहेगा जहां उड़ीसा से आये हुए भजन एवं नृत्य कलाकरों द्वारा मनोरंजक प्रस्तुति दी जायेगी एवं इसी दिन उत्कलिका मातृशक्ति द्वारा श्रीजगन्नाथ मंदिर परिसर में विभिन्न उडिय़ा व्यंजनों का आनन्द पाक मेला का आयोजन किया जायेगा।
8 जुलाई को निकलेगी रथयात्रा
आगामी 8 जुलाई की संध्या 4 बजे यह रथ यात्रा जनमानस के पूरे हर्षोल्लास एवं उड़ीसा के विशेष घंट पार्टी के कलाकारों कीर्तन भजन नृत्य मंडली के साथ आगे अपने गंतव्य मौशी घर की ओर चांदनी चौक, सोनार पारा, गांजा चौक, हटरी चौक होते हुए गायत्री मंदिर तक जायेगी जहां से भगवान को मौसी घर को लोग ले जायेंगे। मौसी घर में 8 दिन भगवान सेवा प्रसाद प्राप्त कर दशमी 15 जुलाई की संध्या 4 बजे वापस अपने मंदिर आने पूरी भव्यता से भजनकीर्तन मंडली एवं मंदिर के सेवकों कार्यकर्ताओं के साथ रथारुढ होकर निकलेंगे एवं हटरी चौक से गद्दी चौक, पैलेस रोड, गोपीनाथ जीव मंदिर से चांदनी चौक होते हुए राजा पारा स्थित अपने श्री मंदिर पहुंचने पर उत्कलिका मातृशक्ति द्वारा भगवान की महा आरती कर स्वागत किया जायेगा। जहां भगवान मंदिर प्रांगण में ही रहेंगे। 16 जुलाई देवशयनी एकादशी को संध्या 6 बजे उड़ीसा के प्रसिद्ध कलाकरों द्वारा लक्ष्मी नारायण वाद विवाद का मनमोहक प्रस्तुतीकरण किया जायेगा एवं भगवान अपने गर्भ गृह में प्रवेश करेंगे इसके पश्चात महाप्रभु योग निद्रा में चले जायेंगे। वहीं चार माह के लिए समस्त विवाह आदि शुभ कार्यों पर विराम लग जायेगा एवं कार्तिक मास के एकादशी जिसे देव उठनी एकादशी कहते हैं में भगवान के निद्रा से जागने के पश्चात पुन: शुभ कार्य आरंभ हो जायेंगे।
अनवसर में महाप्रभु की सेवा उपचार, छह जुलाई को नेत्रोत्सव
शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरंभ
