भिलाई। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय के जातिगत भेदभाव निवारण समिति के द्वारा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के 134 वे जन्म दिवस के उपलक्ष में ‘वर्तमान परिपेक्ष में अंबेडकर के विचारों की सार्थकता’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
जिसमें शिक्षा संकाय के विद्यार्थियों तथा प्राध्यापकों ने भाग लिया इस परिचर्चा की सराहना करते हुए करते हुए महाविद्यालय के मुख्य कार्यकारिणी अधिकारी डॉ. दीपक शर्मा ने कहा कि हमारे देश में कुछ ऐसे महापुरुष और मार्गदर्शक पैदा हुए हैं जो अपने समय से आगे की सोच रखते थे महानायक डॉ. भीमराव अंबेडकर भी ऐसे ही दूरदर्शी पुरुष थे वर्तमान समय में डॉ. अंबेडकर की प्रासंगिकता और बढ़ गई है, अत: युवा पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. हंसा शुक्ला ने परिचर्चा का प्रारंभ करते हुए कहां की डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा सही अर्थों में लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना की उन्होंने सफलता के तीन मंत्र दिए थे शिक्षित हो, संगठित हो, संघर्ष करो। कार्यक्रम की संयोजक तथा महाविद्यालय की उपप्राचार्य डॉ. अजऱा हुसैन ने कहा कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय सामाजिक इतिहास में एक बड़े मानवतावादी चिंतक और आंदोलन कर्मी के रूप में विख्यात है वह भारतीय संविधान के निर्माता है तथा दलितों की मुक्ति के पर्याय के रूप में देश के कोने-कोने में मौजूद है देश की युवा पीढ़ी को उनका अनुसरण करना चाहिए। परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए बीएड द्वितीय सेमेस्टर की छात्रा अपूर्वा गांगुली ने कहां की बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर दलित स्त्री एवं वंचित समुदाय में ज्ञान की ज्योति जलाना चाहते थे वह मानते थे की शिक्षा से ज्ञान आता है , जागरूकता आती है और उसी से शोषण और छुआछूत से मुक्ति मिल सकती है। बाबा साहब ने अपने तीन गुरु माने थे गौतम बुद्ध कबीर तथा महात्मा ज्योतिबा फुले।
बी.एड. द्वितीय सेमेस्टर की छात्रा लीपाक्षी देशमुख ने परिचर्चा को आगे बढ़ते हुए कहा कि बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं के विकास पर विशेष जोर दिया उन्होंने कहा कि यदि किसी समाज की प्रगति देखनी हो तो यह देखो कि उसे समाज की महिलाओं ने कितनी प्रगति की है वे समाज के विकास का पैमाना महिलाओं के विकास को मानते थे। बी.एड. द्वितीय सेमेस्टर के छात्र भुदीप सार्वा ने कहा कि आज चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल साम दाम दंड भेद अपनाते हैं अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए सांप्रदायिकता और जाति का कार्ड खेलते हैं ऐसे में डॉ. अंबेडकर के विचार नितांत आवश्यक हो जाते हैं क्योंकि अंबेडकर क्षमता ,समानता ,स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व को समझ में स्थापित करना चाहते थे जो लोकतंत्र और मानवता के आधार स्तंभ है अत: युवा पीढ़ी के लिए उनके विचारों का अनुसरण करना अति आवश्यक है। उपर्युक्त कार्यक्रम को सफल बनाने में जातिगत भेदभाव निवारण समिति के समस्त सदस्यों श्रीमती अभिलाषा शर्मा सहायक प्राध्यापक शिक्षा संकाय, श्रीमती मोनिका मेश्राम सहायक प्राध्यापक रसायन शास्त्र शिक्षा विभाग के समस्त विद्यार्थियों तथा प्राध्यापकों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में डॉ. अंबेडकर जयंती के अवसर पर परिचर्चा का हुआ आयोजन
